Book Title: Jain Bal Bodhak 04
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 348
________________ ३४० जैनवालबोधक बड़ी भक्ति से पढ़कर गले जेष्ठकी पंचमीको बड़े श्रानंद उच्छाय से स्कंध विधान किया और इस वर्ष दक्षिण के सब नगरों में श्रुतपंचमी पर्व मानकर श्रुतपूजा की गई। दक्षिण देशमें तौ यह श्रुतपंचमी पर्व उसी दिनसे आज तक मनाया जाता है परंतु हमारे उत्तरप्रांत में कुछ दिनोंसे ही यह पर्व बड़े बड़े शहरों में मनाया जाता है । सर्वत्र इसका प्रचार भी तक नहिं हुआ है अतएव विद्यार्थियोंको चाहिये कि प्रति वर्ष जहां तक वनै स पर्वके मनाने का प्रयत्न किया करें और दो चार नवीन ग्रंथ प्राचीन ग्रंथ परसे जीर्णोद्धार करा कर अपने यहां मंदिरजी में स्थापन किया करें। - -::-- ६१. जकडी ( ४ ) रामकृष्ण कृत । -:: अरहंतचरन चिलाऊं । पुन सिद्ध शिवंकर ध्याऊं ॥ बंद निमुद्राधारी । निर्ग्रन्थ यती अविकारी ॥ अविकार करुणावंत वन्दों, सकललोक शिरोमणी । सर्वशभाषित धर्म प्रणम्, देय सुख सम्पति घनी ॥ ये परममंगल चार जगमें, चारु लोकोत्तम सही । भव भ्रमत इस असहाय जियकों, और रक्षक कोऊ नहिं ॥ १ # मिथ्यात्व महारिषु दंड्यो । चिरकाल चतुर्गति हंड्यो || उपयोग - नयन-गुन खोयो । भरि नींद निगोदै सोयौ ॥ सोयौ अनादि निगोदमें जिय, निकर फिर थावर भयौ ।

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