Book Title: Jain Bal Bodhak 04
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha

View full book text
Previous | Next

Page 347
________________ चतुर्थ भाग। ३३६ वर्णन है ) वहुत उत्तमचाके साथ रचना की। फिर जिनपालित शिष्यको सौ सूत्र पढ़ाकर मूतवलिमुनिके पास उनका अभिप्राय जानने के लिये भेजा और जिनपालितने जाकरके सौ सूत्र भूतचलिमहाराजको सुना दिये तो सुनकर उन्होंने श्रीपुष्पदंतमुनिका पखंडरूर आगम रचना करने का अभिप्राय समझ लिया और अव लोग दिन पर दिन अल्पायु और अल्पमति होते जाते हैं ऐसा विचार करके स्वयं पांच खंडोंमें पूर्व सूत्रोंके सहित छह हजार श्लोकोंद्वारा द्रव्यप्ररूपणा अधिकारकी रचना. की और इसके पश्चात् महावंध नामक छठे खंहको तीस हजार सूत्रों में रचना करके समाप्त किया । पहिले पांचखडों के नाम-जीवस्थान, लकवंध, वैधस्वामित्व, भाववेदना और वर्गणा है। श्रीभूतबलि मुनिमहाराजने इस प्रकार पड्खड भागमकी रचना करके पुस्तकमें लिखवाकर लिपिबद्ध किया और ज्येष्ठ शुक्ला पञ्चमीको चतुर्विध संघसहित वेष्टनादि उपकरणों के द्वारा क्रियापूर्वक पूजा की । उसी दिनसे यह जेष्ठ शुक्ला पंचमी संसार में श्रुतपंचमी पर्वके नामसे प्रसिद्ध हुई । इस दिन श्रुतका पुस्तक रुपमें अवतार हुआ इस लिये आजपर्यंत समस्त जैनी जेट सुदी 'पंचमीके दिन श्रुतपूजा (श्रुतस्कंधविधान ) करते हैं। कुछ दिनके पश्चात् भूतवली आचार्यने पट खंड आगम अच्छी तरह अध्ययन (कंठान ) करके जिनपालितके साथ वह पुस्तक देकर श्रीपुष्पदंतमुनिके.पास भेज दिया और उसे देखकर अपने चितवन किये हुये कार्यको पूर्ण हुआ समझकर श्रीपुष्पदंताचार्य शास्त्रके प्रगाढं अनुरागमें तन्मय हो गये और उस ग्रंथको

Loading...

Page Navigation
1 ... 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375