Book Title: Jain Bal Bodhak 04
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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जनवालवाधकसार अपने दीक्षित होनेके समाचार भेजे। यह समाचार सुन महाराज अरण्य भी अपने लघुपुत्र दशरथको राज्य देकर बड़े पुत्र अनंतरथ सहित मुनिदीक्षा धारण करके महान तपके द्वाप समस्त कर्मोको नष्ट कर निर्वाणको प्राप्त होगये।
इधर राजा दशरथ अयोध्यामें रह कोशल 'देशका राज्य करने लगे और नवयौवनको प्राप्त होकर पृथिवीमें प्रसिद्ध हो गये। महाराज दशरथने दरभस्थल नगरका राजा कौशल, रानी अमृतप्रभाकी पुती कौशल्या जिसका दूसरा नाम अपराजिता था, व्याही । तत्पश्चात् एक कमलसंकुल नामक बड़े नगरके राजा सुवंधु, रानी-मित्राकी पुत्री सुमित्राको व्याहा । तीसरेकिसी अन्य नगरके महाराजतिलक नामक राजा, रानी सुलभाकी पुत्री-सुप्रभा व्याही । राजा दशरथने राज्यका परम उदय पाकर सम्यग्दर्शनको रत्न समान जान दृढ़तासे धारण किया और राज्यको तृण समान मानने लगा। क्योंकि राज्यको नहि त्यागै तो नरक गति हो और त्याग दे तो स्वर्ग वा मोक्ष प्राप्ति हो। पूर्वकाल में जो अनेक चैत्यालय मंदिर चक्रवर्ती भरत महाराजने धनवाये थे उन सबका जीर्णोद्धार राजा दशरथने कराया जिससे नवीनसे दीखने लगे । तथा. तीर्थंकरोंके कल्याणक स्थानोंकी रत्नोंसे पूजा करता हुवा।
एक दिन महाराज दशरथ प्रतापसहित अपनी सभामै वि: राजता था सो नारदजी (ब्रह्मचारी) आकाशमार्गसे उतरते हुवे आये उन्होने महाराज दशरथको अपने सुमेरुपर्वत विदेहक्षेत्र