Book Title: Jain Bal Bodhak 04
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
चतुर्यभाग
Le
पूज्य और समस्त प्राणियों को सुख देनेवाले जिनधर्मका बड़ा भारी प्रभाव प्रगट किया ।
उनने एक जिनस्तोत्र बनाया था जिसका नाम आनपरीक्षा स्तोत्र कहा जाता है । उसमें जिनधर्मके तत्त्वका विवेचन और अन्यमतके तत्त्वोंका बड़ेभारी पांडित्यके साथ खंडन किया गया ថ្មី ' उसका पठन पाठन सबके लिये सुखका कारण है। पात्रकेशरोके श्रेष्ठ गुणों और बड़े बड़े विद्वानों द्वारा आदर सत्कार देख कर अवनिपाल राजाने तथा उन पांचसों विद्वान ब्राह्मणोंने मिथ्यामतको छोड़कर शुभभावोंके साथ जैनमतको ग्रहण किया }
तत्पश्चात् ये पात्रकेशरी मुनिदीक्षा लेकर विद्यानंद वा विद्यनंदी नामसे प्रसिद्ध हुये । आचार्य पद प्राप्त होकर न्यायके प्रमाण परीक्षा पत्रपरीक्षा आदि अनेक ग्रंथ बनाये तथा देवागमस्तोत्र पर भगवान प्रकलंकदेवकृत आप्तमीमांसा ढोका पर अटसहस्त्री नामकी बडी भारी टीका रत्री है। जिसके पांडित्यको देखकर बड़े २ विद्वान चकरा जाते हैं इसके सिवाय -भगवत्स मंतभद्राचार्यकृत युक्तयनुशासन आदि ग्रंथोंपर भी टोकायें लिखी हैं ये विद्यानंद स्वामी भट्टाकलंक देवके पश्चात् हो गये हैं ।
-:
५३. छहढाला सार्थ - छठी ढाल ।
हरिगीता छंद मात्रा २८ |
पटका जीवन इन सब विघ दरब हिंसा वरी । रागादि भाव निवार, हिंसा न भावित अवतरी ॥
D