Book Title: Jain Bal Bodhak 04
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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चतुर्थ भाग ।
३१५ पड़ा है। ऊपरको देखा तो जिस वृक्ष की जड़ को पकड़े हुये हैंउस जड़को एक सफेद एक काला दो चूहे काट रहे हैं। इस प्रकार चारो और दुःख और महा कष्ट हो रहा है इसी समय मधुमेंसे एक मधुका बिंदु उसके मुखमें श्रापड़ा उसका स्वाद बहुत ही मिष्ट लगा सो फिर भी ऊपरको मुख वाये रहा थोड़ीदेरमें एक बूंद और पड़ी उसका स्वाद लेकर अन्य समस्त दुःख भूल गया । इसीप्रकार वारंवार मधुकी बूंदोंका आनंद ले रहा था इसी बीच एक विद्याधर दंपती (स्त्रांपुरुष ) विमानमें बैठे जा रहे थे उनकी दृष्टिमें यह मनुष्य पट्टा तो उनने दयाकरके विमानको नीचे उतारा और मनुष्यसे कहा कि भाई ! तुम बड़े कष्टमें हो, यह हाथी तुम्हें विना मारे छोड़ेगा नहीं. श्राश्रीतुमको विमान में बिठाकर तुमारे घर पर पहुंचादें । उस दुखी पुरुषने कहा कि भाप जरा देर ठहरिये एक बूंद आ रही है उसको लेलू तो मैं चलूं जब एक बूंद या गई तो विद्याधरने कहा कि चलो भावो हमको फिर देर हो जायगी । उसने कहा कि- जरासी दया और कीजिये एक बूंद और आजाने दो फिर मैं चलना हूं । थोड़ी देर बाद जब एक बूंद आगर तो फिर विद्याधर ने कहाकि तुम बड़े मूर्ख हो इस एक बूंद मधुके लिये यहां कितना कष्ट भोग रहे हो यदि हमारे साथ विमानमें नहिं आते हो तो फिर तुमारी यहीं पर - मृत्यु है । इस जंगलमें कोई नहिं श्राता तुमारे भाग्य योगसे तुम हमारी दृष्टिमें आगये श्रव चलना हो तो चलो नहीं तो हम चले जाते हैं । इत्यादि बहुत कुछ समझाया इसी बीच में एक बूंद और भी उसके मुँह में पड़ गई परन्तु फिर भी वह कहता है कि- एक
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