Book Title: Jain Bal Bodhak 04
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
चतुर्य भाग।
१८३ भान्म अनात्मके ज्ञान हीन जे जे करनी तन करन छीन । ते सब मिथ्याचारित्र त्याग! पापातमके हित-पंथ लाग॥ जग जाल भ्रमनको देय त्यागांभव दौलत नित भातम सुपाग।
जो अपनी ख्याति, लाभ, पूजा प्रतिष्ठादिकी चाहना मनमें धारण करके निज परके ज्ञानरहित शरीरको पंचाग्निसे जलाना अथवा शरीरमें खाक रमाना नख केश वढाना आदि नानाप्रकारके काय क्लेश करके शरीरको क्षीण करनेवाली प्रादिकी क्रिया है ये सव गृहीत मिथ्याचारित्र हैं।
इनको छोड़कर अब अपने हितकारी मार्ग में लागो और जग: जालमें भ्रमण करनेका त्याग करके हे दोलतराम ! अपने प्रारमकल्याणमें मग्न हो। १५॥
इति द्वितीय ढाल || २॥
३८. श्रीनेमिनाथ, कृष्ण और बलभद्र। . इस भरतक्षेत्रमें सूर्यवंश चंद्रवंश और हरिवंश ये तीन बड़े प्रसिद्ध वंश हो गये हैं। त्रेसठ शलाका पुरुष प्रायः इन्हीं वंशोंमें होते पाये हैं। हरिवंशमें क्रमसे बड़े २ राजा होनेके पश्चात् अंत में एक यदु नामके प्रसिद्ध राजा हुए जिनसे कि यदुवंश चला। 'यदु राजाके वंशमें फिर नरपति नामका राजा हुना। नरपतिके
सूर और सुवीर दो पुत्र हुए। सूरके अंधकवृष्टि और सुवोरके भोजकवृष्टि हुआ ! अंधकवृष्टिके समुद्रविजय, अक्षोभ, स्तिमि