Book Title: Jain Bal Bodhak 04
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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जैनवालवोधकतीनलोक तीनकालमें अन्य कोई सुखकारी नहीं है। समस्त धमों का मूल यही है इसके विना जितनी क्रियायें या चारित्र है वह दुखकारी है । मोक्षमहलकी यह पहिली सीड़ी (पैड़ी) है। इस सम्यग्दर्शन के बिना ज्ञान और चारित्र सम्यग्दान वा सम्यक्चा. रित्र नहिं होता । इस कारण हे भव्य पुरुषो! इस सम्यग्दर्शनको पवित्र (निर्दोष ) धारण करी । दौलतरामजी कवि कहते हैं किहे सयाने ! इस वातको समझ कर सुन और शीघ्र ही चेतजा वृथा काल मत गमा। यदि इस भवमें सम्यक्त्व नहिं होगा तो फिर यह नर भव मिलना अत्यंत कठिन है ॥१७॥
४२. वईमान भगवान और दीपमालिका ।
वर्द्धमान भगवान हमारे चौबीस तीर्थंकरोंमसे अंतिम तीर्थकर हैं इनके महावीर, सन्मति, वीर जन आदि नाम है।
इसही आर्यखंडके-भरतक्षेत्रमें विदेह नामका देश सत्य धर्मोपदेष्टा मुनिसंघादिकोंले परिपूर्ण विदेहक्षेत्रके समान शोभता है जहांसे जीवात्मा निरंतर देहरहित हो मोक्षधाम प्राप्त करते हैं। जहां पदपदमें तीर्थकर व केवलियोंकी निर्वाणभूमियां दिखलाई देती हैं। जिनकी वंदना करनेको मनुष्य, देव व विद्याधर पाया जाया करते हैं । इसी विदेह देशमें वह सम्मेदाचलपर्वत भी है जो अनंत तीर्थंकरों व विलियोंकी निर्वाणभूमि हो गई है और रहेगी ।. इसीको भूगोलमें पार्श्वनाहिलके नामसे लिखाः गया है।