Book Title: Jain Bal Bodhak 04
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 296
________________ ३८८ जैनवालबोधक 'जाती थी। परन्तु परदेकी प्रश्नावली ६ महीने तक होती रहीकिसीकी भी हार जात नहीं हुई। अकलंकदेवके मनमें आश्चर्य - हुआ कि, जो संघश्री मेरे सम्मुख क्षणभर भी नहिं ठहर सकता था, वह आज छह महीने हो गये, बराबर प्रश्न किये जाता है सो यह क्या भेद है, इसी चिन्तामें रात्रिको कुछ शयन किया । उस 'समय चक्रेश्वरी देवीने स्वप्न दिया कि हे विद्वन्! परमैं संघश्री प्रश्न नहिं करता है, किन्तु घड़े में स्थापन कियी हुई उसकी शासन देवता तारा देवी तुम्हारे साथ विवाद करती है। कलं जब आप उसके किये हुए प्रश्नको फिरसे पूछेंगे, तो वह चुप हो जायगी। क्योंकि उसने एक बार प्रश्न किये हुए वाक्यको दूसरी वार न बोलने की प्रतिज्ञा की है । सो वह चुप हो जायगी और प्रापकी जीत होगी । } 1 इसप्रकार गूढ रहस्यको जानकर अकलंकदेवने प्रातःकाल ही सभामें उपस्थित होकर राजा और समस्त विद्वानोंने सिंह. गर्जना के साथ कहा कि-प्राज छह महीने पर्यन्त जो मैने बाद"विवाद किया, सो केवल मात्र जिनशासनका प्रभाव दिखाने के - लिये किया था परन्तु प्राज मैं इस वादको समाप्त कर देता हूं । ऐसा कहकर परदे की ओर देखा, तो परदेसे त्वरित ही एक प्रश्न सुष्मा, वस उसे सुनकर, अकलंकदेवने कहा कि, एकवार प्रश्नको । फिरसे कहो । फिर क्या था, तारादेवीसे बोला नहिं गया, अलं-कदेवने परदे में जाकर, उस घड़ेपर लात जमादी। जिससे वह " लड़ा फूट गया और तारादेवी भाग गई । तब उस, संघभी से कहा कि, वोलता. क्यों नहीं १ परन्तु उसने विद्वानोंकी भरी सभा

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