Book Title: Jain Bal Bodhak 04
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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जैनवालबोधक
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वली और लक्ष्मी पूजन भी कहने लगे। उस दिनसे व्यापारी गण भी अपने यहां व्यापारिक नवीन वर्षका प्रारंभ मानने लगे. जिसको आज विक्रम संवत् १६७९ तक २४४७ वीं वर्ष चलता हुआ (जैनी लोग ) मानते हैं । और दक्षिण भारतके गुर्जर महाराष्ट्र 'कर्णाटकादि प्रान्तोंमें प्रव भी वीर स्वामीके निर्वाण दिनके पश्चात् अर्थात् दिवालीसे नवीन वर्षका प्रारंभ माना जाता है और गुजराती पंचांग भी इसी तिथिसे नवीन संवत् प्रारम्भ करते हैं। और हम लोग भी दीपमालिकाके दिन नैवेद्य बनाकर महावीर स्वामीकी निर्वाणपूजा प्रतिवर्ष करते रहते ही हैं ।
४३. कर्मसिद्धांत |
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आस्रवबंधका विवरण 1
१३६ | बंधके कारण प्रलव चार प्रकार के हैं । द्रव्यवंधका निमित्त कारण. १, द्रव्यवंधका उपादान कारण २, भावबंधका निमित्तः कारण, भावबंधका उपादान कारण ४ |
१३७ । कार्यकी उत्पादक सामग्रीको कारण कहते हैं । कारण दो प्रकारका है । एक समर्थ कारण दूसरा असमर्थ कारण ।
१ जो लोग रुपये पैसेको लक्ष्मी मानकर पूजते हैं वे भूलते हैं।
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२ यह २४४७ का हिसाब अभी तक सर्वजनसम्मत नहिं हुआ है ।