Book Title: Jain Bal Bodhak 04
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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· जैनवालबोधक१४७ । उदय तथा उदीर्णा अवस्थाको प्राप्त पूर्ववद्ध कर्म भाकः वंधका निमित्त कारण है।
१४८ । भावबंधके विवक्षित समयसे अनंतर पूर्व सणवर्ती: योग कषाय रूप प्रात्माफी पर्याय विशेपको भावभका उपदान कारण कहते हैं।
१४६ । द्रव्यवंधके निमित्त कारण अथवाभावबंधके उपादान कारणको भावानव कहते हैं।
१५०। द्रव्यवंधके उपादान कारण अथवा भावबंधके निमित्त कारणको द्रव्यानव कहते हैं ।
१५१ । प्रत्येक प्रकृतिमें मिन्न भिन्न उपादान शक्ति युक्त आत्मा से संबंध होनेको प्रकृति वंध कहते हैं और उन ही स्कन्धोंमें फलदान शक्तिको न्यूनाधिकता होनेको अनुभागवंध कहते है।
१५२ । जिस प्रकार भिन्न भिन्न उपादान शक्तियुक्त नानाप्रकारके भोजनों को मनुष्य हस्त द्वारा विशेष इच्छा पूर्वक ग्रहण करता है और विशेष इच्छाके समय उदर पूर्ण करनेके लिये. सामान्य भोजनका ग्रहण करता है, उसी प्रकार यह जीव विशेष कपायके अभावमें योगमात्रसे केवल साता वेदनीयरूप कमकीप्रहण करता है परंतु वह योग यदि किसी कषायसे अनुरंजित हो तो अन्यान्य प्रकृतियोंका भी बंध करता है।
१५३ । प्रकृतिबंधके कारणत्वकी अपेक्षासे प्रास्रवके पांव भेद है-मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय, और योग ।
१५४ । मिथ्यात्व प्रकृतिके उदयसे प्रदेवमें देवबुद्धि, अतत्वः