Book Title: Jain Bal Bodhak 04
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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चतुर्थ भांग
રંર इस धनधान्यपूरित विदेह देश (वर्तमान विहार) के भीतर मध्यभागमें कुंडपुर (वर्तमान कुंडलपुर ) नगर, देहमें नाभिके समान शोभायमान है। यह उस समय धर्मात्माओंसे भरा हुश्रा था। यहां बड़े ही सुंदर नर नारी समान गुणों के धरनेवाले देवों के समान ऊंचे २ महलोंमें निवास करते थे। कुंडलपुर एक छोटा ग्राम न था परंतु एक बडा भारी नगर था।
इस नगरके रक्षक राजा श्रीसिद्धार्थ थे--यह हरिवंशरूपी 'अाकाशके सूर्य, काश्यपगोत्रधारी, मति, श्रुति, अवधि तीन ज्ञान के स्वामी, नीतिमार्ग पर चलनेवाले, श्रीजिनेंद्रके भक्त, महादान के का, तथा परम मनोहर लक्षणोंसे शोभायमान थे। इनके चंशको नाथवंश भी कहते थे ।
इनकी अर्धाङ्गिनी अपने पतिकी परमप्रिय, जिनधर्मभक्त, "परम गुणवती श्रीप्रियकारिणी थी । जिसको त्रिशला भी कहते हैं । । __ पतिपत्नी गृहस्थधर्मको सेवन करते हुए व नीतिसे प्रजाकी - रक्षा करते हुए सच्चे हार्दिक प्रेमसे जीवन विताते थे । जिसके
कारण इन गृहशीलधारिकायोंको श्रीमहावीरस्वामी पेसे महावीर "पुत्रका लाभ हुआ। जब बडे भारी पुण्यशाली जीव माताके गर्म में आते हैं तव माताके पुण्योदयसे शुभकर्मोदयसूचक शुभस्वप्न होते हैं। एक दिन पिछली रात्रिको श्रीप्रियकारिणीने १६ स्वप्न देखे-प्रातःकाल उठ सामायिक पूजनादि नित्यक्रिया कर राजा सिद्धार्थकी सभा सखियोंको साथ ले, गई । राजा अपनी धर्म