Book Title: Jain Bal Bodhak 04
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
- २३८
जनवालवांधकधूल, मिट्टीपानीका बरसना, विजलीफा कडकना, स्त्रियोंका हावं भाव, शंगार दिखाना, डांस मच्छरोंका काटना, पिशाचोंका 'नाचना आदि-घंटों तक स्थाणने अनेक उपाय किये कि किसी तरह प्रभुका मन ध्यानसे चलायमान करें और उनके क्रोधादि "पैदा हो जावे । परंतु जैसे सुमेरु पर्वतको वनके श्राघात किसी भी प्रकारकी हानि या बाधा नहीं करसते इसीतरह श्रीमहावीर के चित्तको यह उपसर्ग क्षामित न करसका। उन्होंने अपने आत्माको अजर, अमर, अविनाशी, अच्छेद्य अनुभवकर शरीर की क्रियानोंको पुद्गलकी क्रिया जान कुछ भी क्षोभ न किया। स्थालु अपनी परीक्षामें हार गया-हाथ जोड मस्तक नमा खडा हो गया और अनेक प्रकार बीननी कर क्षमा मांगता हुआ'श्रीगुरुने उत्तम क्षमा धर्मकोही स्थिर रक्खा।
प्रभु नगरके बाहर ५ दिन और ग्रामके बाहर तीन दिनसे 'अधिक नहीं ठहरते थे । यहाँसे विहार करते २ आप कोसावी 'नगरीमें पधारे । यहाँ एक सेठ ऋषभसेन बहुत धनी था उसके वशीला नगरीके राजा चेटककी कन्या प्रति गुणवती पतिव्रता 'चंदनासती पुत्रीके भावमें निवास करती थी। उसको अति “रूपवान जान एक विद्याधर विमानमें बैठ कर श्राकाशमार्गसे ले गया था। पीछे इस कामको प्रति निंद्य समझ उसे वनमें छोड गया था। वही सती अपने शोलकी रक्षा करती हुई कौसावी नगरीमें श्राई । वहां इस सेठने दया करके रक्षित किया। परन्तु इसकी स्त्री समुद्राने यह आशंका.कर कि सेठजी इसे स्वस्त्री बनाना चाहते हैं इसको.अपने कुटुम्बसे अलग मकानमें · रख