Book Title: Jain Bal Bodhak 04
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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परिणाम उत्पन्न होते है तथापि देखन
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जैनथालयोधकप्रकार अपने अंतःकरणमें समझ कर इसी गुणका चितवन करना चाहिये ध्यान करना चाहिये और इसी गुणका जाप्य पूजन स्तुति करना चाहिये क्योंकि अपने परिणामोंका ही फल अपनेको मिलता है और परिणाम ही मोक्ष सुख देनेवाले हैं। जैसे भगवानके गुण स्थिर रूप रागादि विकाररहित और आयुध भूषणादि रहित कहे गये हैं वे ही गुण जिनप्रतिमाके देखनेसे अपने मनमें उत्पन्न हो जाते हैं । यद्यपि यह प्रतिमा शिल्पकारकी बनाई हुई और अचेतन है तथापि देखनेसे अपने अंत:करणमें शुभभाव उत्पन्न होते हैं । इसी कारण ही यह प्रतिमा अपने परिणाम शुभरूप करनेके लिये निमित्त कारण है। यहां एक दृष्टांत कहता हूं जिससे तेरा संदेह सर्वथा दूर हो जायगा। ___ एक नगरमें एक बहुत सुंदर वेश्या थी । वह मर गई उसको जलानेके लिये जब उसका शरीर चितापर रक्खा गया तो वहां पर एक व्यभिचारी मनुष्य था वह उस लासको देखकर अपने मनमें तलमलाने लगा कि यह जीवित अवस्थामें मुझे देखनेको मिलती तो मैं इसके साथ विषयसुख भोगकर अपने चित्तको तृप्त करता । वहीं पर एक कुत्ता खड़ा२ अपने मनमें पश्चात्ताप करने लगा कि ये लोग इसे व्यर्थ ही जलाये देते हैं यदि ये मुझे दे देते तो मैं इसे खाकर अपनी कई दिन तक क्षुधा शांत करता । और वहीं पर एक साधु मुनि बैठे थे उन्होंने इसे एक बार देखकर मनमें कहा कि-हाय हाय ! ऐसा निरोग शरीर पाकर इस ने तपश्चरण नहिं किया । इस प्रकार उस अचेतन शरीरको देख . कर भिन्न २ जीवोंके भिन्न २ परिणाम कैसे हुये सो विचार कर।