Book Title: Jain Bal Bodhak 04
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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चतुर्थ भाग। सम्यग्लान है और अपने प्रात्म स्वरूपमें ही लोन व स्थिर रहना लो निश्चय सम्यक्चारित्र है । इस निश्चय मोक्षमार्गका जो कारण स्वरूप व्यवहार मोक्षमार्ग उसे अव सुनिये॥२॥
जीव अजीब तत्त्व अरु यात्रर, वंघ रु संवर जानो। निर्जर मोक्ष कहे जिन तिनको, ज्यों को त्यों सरधानो ।' है सोई समकित व्यवहारी, अब इन रूप बखानो। तिनको सुनि सामान्य विशेष, ह प्रतीति उर भानो ॥३॥
जीव, अंजीव, श्रास्त्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष ये सात तस्व जिनेंद्र भगवानने जिस प्रकार कहे हैं उसी प्रकार श्रद्धान करना सो व्यवहार सम्यग्दर्शन है। अव इन तत्वोंका सामान्य
और विशेष स्वरूप प्रागें कहता हूं सो जानकर उनपर दृढ़ श्रद्धानः करना ॥३॥
अहिरातम अंतर प्रातम परमातम जीव त्रिधा है। देह जीवको एक गिने, वहिरातम तत्व मुधा है ।। उत्तम मध्यम जघन त्रिविधिके, अंतर आतम ज्ञानी । दुविधसंग विन शुध उपयोगी,मुनि उत्तम निज ध्यानी ! मध्यम अंतर आतप हैं जे; देशवती आगारी! ' जघन कहे अविरत समदृष्टी, तीनों शिवमगचारी || : सकळ निकल परमातप द्वै विध, तिनमें घातिनिवारी। श्रीधरहंत सकल परमातम, लोकालोकनिहारी ॥५॥ जीव (आत्मा) तीन प्रकारके हैं, वहिरात्मा, अंतरात्मा, और परमात्मा जो शरीर और आत्माको एक ही जाने सो तो तत्त्वः