Book Title: Jain Bal Bodhak 04
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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चतुर्थभाग
२१६ पर रखकर पूजाकी फिर अगर चंदन बगेरह सुगन्धि द्रव्योंसे अग्नि कुमार देवोंने अपने मुकुटसे उत्पन्न की हुई अग्निसे भगवान के शरीरको दग्ध किया । भगवानका शरीर दहन होनेसे चारों तरफ सुगंधि फैल गई । उसके बाद दहन क्रियाकी भल लेकर इन्द्रादिक देवोंने अपने २ मस्तक छाती हाथ गले पर लगाई और बड़ी भक्तिसे नृत्यभजनादिक कर वे समस्त देव अपने अपने स्थान चले गये।
पार्श्वनाथ भगवानके भवांतर.
१। ब्राह्मणे कुलमें मरुभूति मंत्री। २६ सल्लको वनमें वज्रघोप नामका हाथी जिसने बारह
व्रत पाले। ३. वारहवें स्वर्गमें शशिप्रभ देव । ४॥ विद्याधर कुमार अग्निवेग जिसने वालकपनमें संयम .
लिया। ५। अच्युत स्वर्गमें देव जिसकी आयु वाईस सागर। ६। वज्रनामि चक्रवर्ती। ७। अहमिंद्र देव । ८मानंद राजा जिसने मुनि दीक्षा लेकर १६ भावना
भाई। । तेरहवें स्वर्गमें इन्द्र हुये। . .