Book Title: Jain Bal Bodhak 04
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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१९६०
जैनवालबोधकउनको लाने के लिये विराधितको भेजा और रामचंद्रका भी चंद्रवर्धन प्रादि राजाओंकी कन्याओंसे विवाह हुआ। तत्प श्चात् लकाका राज्य विभीषणको देकर उसे सुखी किया और छहवर्पतक वहां रहकर अयोध्याको चल दिये।
अजोध्यामें इनके आगमन पर खूब उत्सव दान धर्मादिक हुआ । इन्हे देखकर सब प्रजा खुसी हुई । भरत, अपनी प्रतिक्षानुसार १००० राजाओं सहित मुनिदीक्षा लेकर प्रात्मकल्याणमें लग गया, कुछ दिन बाद केशईने ३०० स्त्रियों सहित प्राधिकाकी दीक्षा ली। इधर रामका राज्याभिषेक करनेको कहा। रामने. कहा-लक्ष्मण नारायण है इसीका अभिषेक होनाचाहिये लक्ष्मण ने नहिं माना तब दोनों भाइयोंका तथा सीता और विसल्याका राज्याभिषेक हुआ। सब राजावोंको उन उनका राज्य दिया. जिनका राज्य छिन गया था उनको वापिस दिलाया। शत्रुधनको मथुराका राज्य दिया। मथुराका राजा मधु स्त्रोमें श्राशक्त था उसे राज्यकाजकी कुछ चिंता नहिं थी, अहोरात्र विषयभोंगोंमें लवलीन था सो उसे जीतकरके शत्रुघ्नने मथुराका राज्य लिया है. ___ कुछदिन राम लक्ष्मण बड़े आनंदसे रहने के बाद सीताके. गर्भ रहा उस समय सीताको तीर्थ और मंदिरों के दर्शनकी अभिलाषा हुई · कभी वीचमें एक दिन अजोध्याकी प्रजाके प्रधान २, मनुष्य एकत्र होकर रामके निकट प्रार्थना करने आये परंतु भय खाने लगे शेषमें कहा कि प्रभो नगरमें बड़ाभारी अन्याय होने लगा है। सबल निर्वलकी स्त्रीको छीन लेता है कुछ दिनके वाद. वह किसी कामकी सहायतासे अपनी स्त्रीको वापिस ले पाता
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