Book Title: Jain Bal Bodhak 04
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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चतुर्थ भाग। भैया! देर न कर उठ खडा हो, मैं क्षणभर भी तेरा वियोग नहीं सहन कर सकता, सीता विछड़ी तो क्या तू भी विछुड गया ? इत्यादि प्रकारसे श्रीराम विलाप करकं रोने लगे। __ सीताको भी यह समाचार मिल गये, वह भी बहुत विलाप कर करके रोने लगी। इधर सारी सेनामें कोलाहल मच गया। इसी बीच में एक मनुष्यने आकर लक्ष्मणके वचनेका यह उपाय बताया कि-अजोध्याके अधीन द्रोणमेघ राजाकी पुत्री विसल्याके स्नानका जल मगावो तो अभी लक्ष्मण खड़े हो जाय। हनुमानने तत्काल ही अजोध्या जाकर भरतले यह हाल कहाभरतने द्रोणमेघको वुलाया तौ विसल्यास्वयं ही जानेको तैयार हो गई सो हनुमान विमानमें विठाकर लिवा लाया । विशल्याके आते ही शक्ति लक्ष्मणके शरीरमेंसे निकल भागी । लक्ष्मण चैतन्य हो गया और उसके स्नानके जलका छोटा दे, अन्यान्य घायल योद्धावोंके घाव भी अच्छे कर दिये गये। तभी इन्द्रजीत कुम्भकरण श्रादि शत्रु पक्ष के योद्धावोंके घाव भी अच्छे कर दिये।
दोनों ओरसे धनघोर युद्ध हुआ। बहुतसा युद्ध होनेके पश्चात् रावणने लक्ष्मण पर चक्र चलाया । रामजी तरफसे चक्र से लक्ष्मणको बचाने के लिये कई योद्धा उद्यत हुये परंतु वह प्रतिनारायणके हाथका चक स्वयं ही अपने नियमानुसार लक्ष्मण नारायणको तीन प्रदक्षिणा देकर लक्ष्मणके हाथ पर आ गया। फिर लक्ष्मणने उस चक्रको रावण पर चलाया तो रावणका उरस्थल छेदकर रावणको प्राणरहित कर दिया।
रावणने प्रथम तो लंकाका आधा राज्य देकर सीताको रख