Book Title: Jain Bal Bodhak 04
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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जैनवालबोधक
'ने ३०० कन्यायोंका लक्ष्मण के साथ विवाह करनेको प्रार्थना की। तब इन्होंने कहा कि अभी हम विवाह नहि कर सकते ।
कहीं स्वतंत्र स्थान बनाकर रहेंगे तब हम विवाह करेंगे। ये जहां
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जाते सब वहीं रहने की कहते सो इन्होंने भी यहीं रहनेका बहुत
कहा परंतु ये दशांगपुरसे रात्रिमें बिना किसीको कहे चल दिये
वहांसे चलकर नलकूवर नगर के पास वनमें आकर ठहरे । नलकूवर नगर में बाल्यखिल्यकी पुत्री कल्यागामाला पुरुषवेश में राज्य करती थी सो लक्ष्मण जब एक सरोवर पर पानी लेनेको गये तो उसी वनमें कल्याणमाला भी वस्त्रावास (तंबू) तान कर हवा खाने को आई थी सो उस सरोवरी पर लक्ष्मणको देखकर मोहित हो गई । उसने अपने आदमी भेजकर लक्ष्मणको बुलाया और वहीं पर रहने को कहा। लक्ष्मणने कहा- मेरे भाई भोजाई बनमें हैं । तब उनको भी लक्ष्मणसहित जाकर बुलाया और खूब आदर सत्कार किया । भोजनके पश्चात् कल्याण मालाने पुरुष मेप छोडकर स्त्री वेश धारण कर सबको प्रणाम किया । पुरुष भेषका कारण पूछने पर कल्याणमालाने कहा कि यह राज्य सिंहोदरके आधीन है। उससे मेरे पिताके साथ यह संधि हो गई थी कि -अव तेरे पुत्र होगा तो उसे राज्य मिलेगा अन्यथा पिताके बाद राज्य सिंहोदर के लेगा। सो जब मेरा जन्म हुआ तो मेरे पिताने पुत्र होनेकी प्रसिद्धि की, इस कारण मैं पुरुषवेश में रहती हूं। मेरे पिताको म्लेच्छ लोग पकड कर ले
गये हैं इस समय राज्यकार्य मैं हो चला रही हूं । पिताके वियोग
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