Book Title: Jain Bal Bodhak 04
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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जैनबालबोधक
लिये भेजा | मंदोदरीने प्रसन्न देख समझाया तौ सीताने कहा कि मैंने आज प्रपने पतिकी खबर पाई है इसलिये प्रसन्नता है । यह अंगूठी कौन लाया है सो प्रगट हो, जब यह कहा तो हनुमानने हाथ जोड़कर नमस्कार किया। सीताको रामचंद्रजी के सव समाचार कहे । तद विशेष प्रसन्न हुई । मंदोदरीने कहा- बड़े
की बात है तुम तौ रावण के भागजी जवांई ( खरदूषणके जवाई) और रावणके परम भक्त आज्ञाकारी सेवक हो । तुम विद्याधर होकर भूमिगोचरीकी तरफदारी करके दूत वनकर आये हो,क्या तुम्हें अपने स्वामीका कुछ भी खयाल नहिं हुआ
?
हनुमानने जवाब दिया कि- आश्चर्य तौ इस बातका है कि तू राजा मयकी पुत्री तीन खंडके अधिपति रावणकी पटरानी पतिव्रता होकर भी रामकी पतिव्रता स्त्रीको वहाकर अपने पतिको नरक में और अपनेको दुखमें डालने के लिये दूतीपना करने को आई है। तुझे शर्म नहिं श्राती ?
हनुमानके वचन सुन मंदोदरी क्रोधसे लाल नेत्र करके बोली कि - अरे हनुमान ! तेरा बचनालाप व्यर्थ है निर्लज सुग्री वादिक अपने स्वामी रावणको छोड़कर भूमिगोचरियोंके सेवक बने हैं सोच सकी मौत आ गई है। सीतासे यह सहा नहीं गया। उसने रामचंद्रकी शक्तिकी प्रशंसाकी । रावणकी निंदा की और कहा कि मेरा पति और लक्ष्मण आवैगा तौ तू शीघ्र ही विधवा हो जायगी । यह सुन कर वे सब सीताको मारनेके लिये उद्यत हुई हनुमानने वीचमें पड़कर सबको भगा दिया । जि ससे मानद्दीन और उदास होकर रावणके पास गई। हनुमानमे