Book Title: Jain Bal Bodhak 04
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
४५
चतुर्थ भाग। होनेवाले थे, इसलिये महाराज नाभिरायका इन्द्रोंने राज्याभिषेक कराया था।
भगवान् ऋषभनायके उत्पन्न होनेके पूर्व पंद्रह मास तक महाराज नाभिरायके आंगनमें तीन वक्त रलोंकी वर्षा कुवेर किया करता था। __भगवानके गर्भ में आनेसे पहिले भगवानकी माता मरुदेवीने इस प्रकार सोलह सुपने देखे । १ सफेद ऐरावत हाथी, २ गंभीर आवाज करता हुआ एक बडा मारी बैल, ३ सिंह, ४ लक्ष्मीदेवीका कलसोंसे स्नान, ५ दो पुष्प मालायें, ६ तारों सहित चंद्रमंडल, ७ उदय होता हुआ सूर्य, कमलोंसे ढके हुये दो सुवर्ण कलश, ६ सरोवरमें क्रीड़ा करती हुई मछलियां, १० एक वडा भारी तालाब, ११ समुद्र, १२ हासन, १३ रत्नमय विमान, १४ पृथिवीको फाड़कर पाता हुआ नागेंद्रभवन १५ रत्नोंकी राशि, १६ विना धूयेकी जलती हुई अग्नि । इन सोलहों स्वप्नोंके देखे वाद माताने एक महान वैलको अपने मुख में प्रवेश करते हुये देखा। ये स्वप्न रात्रिके पिछले पहरमें देखे । प्रात:काल उठते ही मरुदेवी स्नानादिके पश्चात् महाराज नाभिरायके पास गई। महाराजने महारानीको अपने निकट सिंहासनपर विठाया। और महारानीने अपने स्वप्न कहकर सुनाये तव महाराजने अपने अवधिमानसे जानकर कहा कि तुम्हारे गर्ममें प्रथम तीर्थंकर
१ प्रत्येक तीर्थकरके जन्मसे पहिले जन्मनगरकी रचना इन्द्रकी भाज्ञासे कुवेर बनाता है।