Book Title: Jain Bal Bodhak 04
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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चतुर्थ भाग। नदियों और पर्वतोंसे घिरे हुये गावोंको खेड (जिनको आजकल खेड़ा कहते हैं) और पर्वतोंसे घिरे हुये स्थानोंको खर्चट नाम दिया गया । जिन गावोंके पास पास पांव सौ घर थे उन्हें मांडव और समुद्रके पास पासवाले स्थानोंको 'पत्चन ( पट्टण ) तथा नदीके पासवाले ग्रामोंतो द्रोणमुख संज्ञा दी । राजधानियों के पाठ श्राप लौ गाव, द्रोणमुख गावोंके अधीन चार चार सौ गांव और खटोंके अधीन दो दो सौ गांव रखे गये।
भगवानने प्रजाको शस्त्रधारण करना उनका उपयोग करना खेती करना, लेखन, व्यापार विद्या शिल्प कला, हस्तकौशल आदि समस्त कारीगारी बताई।
उस समय जिन्होंने शस्त्रधारा कर प्रजासी रक्षाका काम स्वीकार किया उनको तो क्षत्रिय और जिन्होंने नेती, व्यापार, पशुपालनका कार्य स्वीकार किया उन्हें वेश्य और इन दोनोंकी सेवा करनेका कार्य स्वीकार किया उन्हे शूद्रवर्ण स्थापन किया । पहिले वर्णव्यवहार न था, यहोंसे वर्णव्यवहार चला।
इस प्रकार कर्मयुग वा कर्मभृमिक्षा प्रारंम भगवान् अपमेंश्वरने पापाढ कृष्णा प्रतिपदाको किया था। इस कारण भगवान कृतयुगके करनेवाले युगादि पुत्य कहलाते हैं और इसी लिये समस्त प्रजा उन्हें विधाता, नष्टा, विश्वकर्मा आदि नामोस पुकारने लगी थी। ___ इस युगके प्रारंभ करनेके कितने हीचर्पवाद नाभिराजमदाराजके द्वारा भगवान् अपभदेव सम्राट् पदवीसे विभूपित किये