Book Title: Jain Bal Bodhak 04
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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चतुर्थ भाग ।
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थितिलाख वरस यासन पद्म, नाम रहे श्रघ जाय हर । सिरनाय नमीं जुग जोरिकर, भो जिनंद भवतापहर ॥ १६ ॥ नाम - श्री शांतिनाथ श्रागमन - सर्वार्थसिद्धिसे । जन्म नगर- हस्तिनापुर | पिता- विश्वसेन राजा । माता पेरा देवी । लच्छन- हिरनका । वरन - सोनेका सा । शरीरकी ऊंचाईचालीस धनुप । प्रायु-एक लाखवरस | पद्मासनले मुक्ति गमन | ये भगवान् चौदह रत नवनिधिके स्वामी पाचवें चक्र वर्त्ती और कामदेव भी थे ॥ १६ ॥
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२८. कर्मसिद्धांत ( १ )
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१ । संसारी और मुक्तके भेदसे जीव दो प्रकारके हैं। २। कर्मसहित जीवको संसारी और कर्मरहितको मुक्त जीव कहते हैं।
३। जीवके रागद्वेषादिक परिणामोंके निमित्त से कार्माणवर्गणा रूप जो पुद्गल स्कंध जीवके साथ बंधको प्राप्त होते हैं उनको कर्म कहते हैं ।
४। बंध चार प्रकारका है। प्रकृतिबंध, प्रदेशबंध, स्थितबंध और अनुभाग बंध |
५। प्रकृति बंध और प्रदेशबंध तौ योगोंसे होते हैं। स्थितिबंध और अनुभाग बंध कषार्योंसे होते हैं :
६ | मोहादिजनक तथा ज्ञान दर्शनादि घातक स्वभाववाले