Book Title: Jain Bal Bodhak 04
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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जैनवालवोधक११ । औदारिक और वैक्रियक शरीरोंको कांति देनेवाला तेजस शरीर जिस वर्गणासे वनै उसको तैजसवर्गणा कहते हैं।
१२। जो वर्गणाय शब्दरूप परिणमै उनको भापावर्गणा कहते हैं।
१३ । जिन वर्गणाओंसे अष्ट दलाकार पुप्पको समान द्रव्यमन बनै उनको मनोवर्गणा कहते हैं।
१४। जो कार्माण शरीररूप परिणमैं उसको कार्माणधर्गणा कहते हैं।
१५ । ज्ञानावरणादि अष्टकर्मों के समूहको कामांण शरीर कहते हैं। · १६ तेजस और कार्माण शरीर समस्त संसारी जीवोंक होता है और ये दोनों शरीर दूसरी पर्याय या गतिम साथ जाते हैं।
१७। गतिरूप परिणमें जीव और पुद्गलको जो गमनमें सहकारी हो, उसको धर्मद्रव्य कहते हैं । जैसे मछलीको चलनेके लिये सहायक जल है।
१८ गतिपूर्वक स्थितिरूप परिणमे जीव और पुदगलको जो स्थितिमें सहायक हो उसे अधर्मद्रव्य कहते हैं।
१६ जो जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और काल इन पांचों द्रव्योंको ठहरनेके लिये जगह दे उसको आकाशद्रव्य कहते हैं।
२० । जो जीवादिक द्रव्योंके परिणमनेमें सहकारी हो उसको कालद्रव्य कहते हैं। जैसे कुम्हारके चाकके घूमनेके लिये लोहे. की कीली।