Book Title: Jain Bal Bodhak 04
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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चतुर्थ भाग! जीता। समस्त राजाओंको आवाकारी बनाकर फिर वृषभाचलपर्वतके पास पहुंचे। जितने चक्रवती होते हैं अपनी दिग्विजय पूरी होनेपर इस पर्वतपर अपना नाम पता अंकित कर जाते हैं सोभरत चक्रवती भी अपना नाम अंकित करने लगा तो उस पर्वतपर पूर्व कालमें हुये चक्रवर्तियोंके नामोंसे कोई जगह खाली नहिं मिली तव एक चक्रवतीका लिखा नाम मेटकर अपना नाम अंकित करना पड़ा। तत्पश्चात् विजयाई की तलहटी में आये तो विजयाद्धकी दोनों श्रेणियों के स्वामी नमि विननि इनके आधीन हुये और अपनी सुभद्रा बहनका भरतके साथ विवाह किया । तत्पश्चात् गंगा नदी वाली पूर्वगुफाका दरवाजा खोलकर अपने देश आर्य खंडमें आये और समस्त दिग्विजय पूर्ण हो गई। परंतु चक्ररत्न (आयुध)ने आयुधशालामें प्रवेश नहिं किया जिससे निश्चय हुआ कि अभी तक विजय पूर्ण नहिं हुई, कोई न कोई राजा भरतकी आमा मानना स्वीकार नहि करता है। ऐसा निश्चय होने पर मंत्रियोंने विचार किया तो मालूम हुवा कि भरतके अन्य छोटे भाईयोंने तो भगवानकी प्राशासे मुनिदीक्षा लेली थी परंतु भरतकी अपर माताके पुत्र बाहुबनी जिनका शरीर १० धनुप ऊंचा है वे अपनेको स्वतंत्र राजा मानते हैं और भरताना शिरोधारण करनेकी कुछपरवाह नहिं रखते । भरतने वावलिको समझाया परंतु बाहुबलि नहिं माने । श्रतमें दोनों नरफको सेना युद्धके लिये तैयार हुई। __जब दोनों तरफसे युद्धका निश्चय हो गया और युद्ध प्रारंभ होनेका समय बिलकुल पास आ गया तो दोनो भाइयकि