Book Title: Jain Bal Bodhak 04
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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जैनवालवोधकजीवन निर्वाह करना कठिनसा हो गया इस कारण महाराज नाभिरायका वह समय बड़ा विकट वा अटपटा मालूम दिया सो यह समयका प्रभाव था इस कारण जैन इतिहास उस समयके मनुष्योंको असभ्य नहिं कह सकता न वह जगतका बाल्यकाल था किंतु कर्म भूमिका बाल्यकाल था, उस समय जीवन निर्वाह के साधन बहुत ही अपूर्ण थे।
महाराजा नाभिरायकी महारानीका नाम मरुदेवी था, मरुदेवी बड़ी ही विदुपी रूपवती पुण्यवती थी । महाराज नाभिराय फर्मभूमिकी प्रवृत्ति करनेवाले तथा सबसे पहिले धर्म मार्गको प्रकाशित करनेवाले भगवान् ऋपभदेवके पिता थे।
भगवान् ऋषभनाथके उत्पन्न होनेके पंद्रह महीने पहिले महा राजा नाभिराय और महारानी मरुदेवीके रहनेके लिये इंद्रकी श्राज्ञासे कुवेरके देवोंने एक बड़ा सुन्दर नगर बनाया था। वह नगर ४८ कोश लंवा और ३६ कोश चौड़ा बनाया गया था। इस नगरका नाम अजोध्या रक्खा गया । वर्तमानमें यह नगरी बहुत छोटी और उजाड़ रह गई है : जिस देशमें यह नगर था, उसका नाम आगे जाकर सुकोशलदेश पड़ा था, इस कारण अजोध्याका एक नाम सुकोशला भी है । इस नगरीमें जो लोग भिन्न २ इधर उधरके प्रदेशोंमें रहते थे उन्हे लाकर देवोंने वसाया महाराज नाभिरायके लिये इस नगरके मध्य भागमें बहुत ही
सुन्दर राजभवन बनाया गया था। इस नगरमें शुभ मुहर्त्तसे राजा .....का प्रवेश कराया गया । भगवान् ऋषभदेव इनके यहां उत्पन्न