Book Title: Jain Bal Bodhak 04
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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चतुर्य भाग।
५१ १। तीर्थंकरका नाम
ऋषभदेव २१चरणोंमें चिन्ह
वृपभ (बैल) ३। पिताका नाम
नाभिराय ४। माताका नाम
मरुदेवी। . ५। आयु
चौरासी लाखपूर्वका ६ । शरीरकी ऊंचाई
पांचसौ धनुप ७जन्मनगरी
अयोध्यापुरी ८। शरीरका वर्ण
सुवर्णसम ६। पूर्वजन्मस्थान
सर्वार्थसिद्धि। १० । निर्वाणसमयका श्रासन
पद्मासन महाराजा नामिरायके भगवान ऋषभनाथका जन्म चैत्र कृष्णा नवमी उत्तरापाढ़ नक्षत्रके पिछले भाग अभिजित् नक्षत्रमें हुवा। भगवानको जन्मसे ही मतिज्ञान श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान था। भगवानका जन्म होते ही स्वर्ग प्रादि देवोंके स्थानों में कई ऐसे कौतूहल पूर्ण कार्य हुये जिनसे चौंककर देवोंने अपने अवधिज्ञानसे भगवानका जन्म हुवा जान लिया और वे लव बड़ी धूमधामके साथ ऐरावत हाथीको लेकर अयोध्या आये। प्रथम तो अयोध्या नगरीकी तीन प्रदक्षिणा दी फिर इन्द्राणीको प्रसूतिघरमें भेजकर भगवानकोमगाया । इंद्राणी माताको मायामयी निद्रामें मग्नकरके भगवानको उठा लाई और इन्द्रको ला सौंपा इन्द्रने भगवानका रूप निरीक्षण करनेके लिये एक हजार नेत्र वनाये तौभी वह तृप्त न हुवा फिर ऐरावत हाथी पर विठा कर गाजे बाजे सहित समस्त देव सुमेरु पर्वत पर ले गये। भगवान