Book Title: Jain Bal Bodhak 04
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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जैनवालवोधकसिंहत कुरंग होय व्याल स्याल अंग होय,
विष पियूप होय, माला अहिफणते। विषमतें सम होय संकट न व्यापै कोय,
एते गुण होय सत्यवादीके वचनते ॥४॥ अर्थ-सत्यवादीके सत्य वचन कहनेसे अग्नि तो पानी हो जाती है, समुद्र सूखकर जमीन निकल पाती है, शस्त्र फूल हो जाता है, जंगल में गांव वस जाता है, कुया छोटासा छेद हो जाता है, पर्वत घर बन जाता है, इन्द्र नौकर बन जाता है, शत्रु मित्र हो जाता है,सिंह हाथीके समान सीधा और व्याल गीदड़के समान डरपोक बन जाता है, इसके सिवाय विप अमृत, सांपका फण फूलमाल, टेडा सीधा हो जाता है और किसी तरहका भी संकट नहीं आता।
१८. युगादि पुरुष भगवान ऋषभनाथ।
छप्पय। ऋषभदेव रिषिनाथ चूपम लच्छन तन सोहै।
नाभिरायकुल कमल मात मरुदेवी मोहै ।। चौरासी लख पुन्य प्राव, शतपंचधनुष तन ।
नगर अयोध्या जनम कनकवपु वरन हरन मन । सर्वार्थसिद्धि गमन पदमासन केवल ज्ञानवर।
शिरनाय नमौं जुगजोरि कर भोजिनंद भवतापहर ॥१॥