Book Title: Jain Bal Bodhak 04
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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चतुर्थ भाग ।
२७
क्षेमंकरके समझाने से श्रव उन पशुओंसे जुदे रहने लगे और उनका विश्वास करना छोड दिया ।
इनके प्रसंख्यात करोड वर्ष बाद चौथे क्षेमंधर नामके कुलकर हुये। इनके समय में सिंहादि जंतुओं की क्रूरता और भोवढ़ गई थी और इनसे बचनेके लिये इन्होंने लाठी सोटा रखनेकी सम्मति दी ।
इनके पश्चात् असंख्यात करोड वर्षवाद पांचवें सीमंकर नामके कुलकर हुये । इनके समयमें कल्पवृत्त वहुत कम हो गये थे और फल भी थोड़ा देने लगे थे इस कारण मनुष्यों में विवाद होने लगा. इन्होंने अपनी बुद्धिसे कल्पवृक्षोंकी हद्द बांधदी थी और अपनी हद्दके अनुसार उससे फल लेकर काम चलाने लगे ।
इनके पश्चात् श्रसंख्यात करोड वर्ष बीते वाद सीमंधर नाम के छठे कुलकर हुये। इनके समय में कल्पवृक्षों के लिये विवाद और भी अधिक होने लगा। क्योंकि कल्पवृक्ष बहुत घट गये थे और (वस्त्रादिवस्तुएं ) फल भी बहुत कम देते थे । अतएव इन कुलकरने उनका विवाद दूर किया और फिर नये प्रकार से वृक्षोंकी हद्द बांधी।
इनके पश्चात् फिर सातवें कुलकर विमलवाहन हुये । इन्होंने हाथी घोडा ऊंट वैल आदि सवारी करने योग्य पशुओं पर सवारी करना बताया ।
इनके पश्चात् असंख्यात करोड वर्षचाद आठवें कुलकर चतुमान् नामके हुये । इनके समय से पहिले तौ माता पिता