Book Title: Jain Bal Bodhak 04
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
२६
जैनवालवोधकदीखने लगे। इनको देखकर उस समयके भोगभूमिया लोग बहुत डरे और डरकर उनमेंसे जो अधिक प्रतापशाली काल परिवर्तनके नियमों को जाननेवाले प्रतिश्रुत नामके एक महाशय थे. सबजनोंने उन्हीके पास जाकर सूर्य चन्द्रमाको दिखाकर अपने भयका हाल कहा। उन्होंने सवको समझाया-ये सूर्य चंद्रमा हमेशहसे रहते हैं कल्प वृत्तोंका प्रकाश क्षीण होनेसे अब दीखने लगे हैं। इनसे डरनेका कोई कारण नहीं है और भविष्यमें जीवन निर्वाह कैसा होगा ये सव वति भी बताकर उनका भय दूर कर दिया, ये ही प्रतिश्रुत पहिले कुलकर हुये।
इनके असंख्यात करोड़ों वर्ष बाद सन्मनि नामके दुसरे कुलकर हुये, इनके समयमें ज्योतिरंग जाति के वृक्षों का प्रकाश इतना मंद हो गया कि नक्षत्र और तारोंका प्रकाश भी नहिं दवा जिससे श्राकाशमें चारों तरफ तारे दिखाई देने लगे, उन्हें देखकर उस समयके मनुष्योंको फिर भय हुश्रा और इनके पास आकर भयका कारण कहा तो उन्होंने और नक्षत्रोंके (ज्योतिष चक्रके) हमेशह रहनेका तत्त्व समझाया और रात्रि दिन सूर्य ग्रहगा चंद्र ग्रहण सूर्यका उत्तरायन दक्षिणायन होना आदि सब भेद समझा ज्योतिष विद्याकी प्रवृत्ति की।
इनके भी असंख्यात करोड वर्षांवाद क्षेमकर नामके तीसरे कुलकर हुये । अवतक सिंहादि क्रूर जंतु शांत थे पर इनके समयमें उनके क्रूरता आगई और वे मनुप्योंको तकलीफ देने लगे। पहिले मनुष्य इन पशुओंके साथ रहते थे, प्यार करते थे परन्तु