Book Title: Jain Bal Bodhak 04
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
३६
जैनवालवोधकपुरुष होते हैं वे भी परंपराय मोक्षगामी होते हैं । सो गत चतुर्य फालमें नीचे लिखे ६३ उत्तम पुरुष होगये है। . .
तीर्थकर उन्हें कहते है कि जो धर्मतीर्यके प्रवर्तक हों और स्वमिसे वा सर्वार्थसिद्धि प्रादिक उपरिके विमानमिसे (देवं. योनिसे ) चयकर किसी राजाधिराजकी पटराणीक गर्भ प्रा।
और जिनके चार प्रकारके देवदेवांगनावोंद्वारा गर्भ, जन्म, तप, शान और मोक्ष कल्याणक हों । केवलझान प्राप्त होनेपर समस्त देशोंमें धर्मोपदेश द्वारा असंख्य जीवोंको मोक्ष मार्गमें लगाकर वा मुक्तकरके स्वयं मोक्षको प्राप्त होते हों।
ऐसे तीर्थकर वर्तमानमें ऋषभनाथ १ अजितनाथ २ शंभवनाथ ३ अभिनंदन ४ सुमतिनाथ ५ पमप्रभ ६ सुपार्श्वनाथ ७ चंद्रप्रभ ८ पुष्पदन्त : शीतलनाथ १० श्रेयांसनाथ ११ वासुपूज्य १२ विमलनाथ १३ अनन्तनाथ १४ धर्मनाथ १५ शान्तिनाथ १६ कुंथुनाथ १७ अरनाथ १८ मल्लिनाथ १६ मुनिसुव्रत २० नमिनाय २१ नेमिनाथ २२ पार्श्वनाथ २३ और वर्द्धमान ये २४ हो गये हैं।
चक्रवर्ति-वे होते हैं कि जो छह खंड राज्य करके अन्त में तपश्चर्यापूर्वक स्वर्ग मोक्षादिक उत्तम गातेको या नरक प्राप्त हों। ऐसे चक्रवर्ति १ भैरत २ सगर इमघवा ४ सनत्कुमार शान्ति. नाथ ६ कुंथुनाथ ७ अरनाथ ८ सुभौम : पद्मनाथ १० हरिपेण ११ जयसेन और १२ ब्रह्मदत्त ये बारह हो गये हैं। ___• कोई कोई तीर्थंकर नग्कसे भी मनुष्य योनिमें आते हैं । • में भारत चक्रवर्ति आदि तीर्थकर ऋषभनाथजीके सौ पुत्रोंमसे बड़े पुत्र थे ।