Book Title: Jain Bal Bodhak 04
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
W
३२
अनवालवोधक
कपड़े पहरने वाले को पीतांबर कहते हैं परंतु पीले कपड़े पहरने वाले सबको ही पीतांबर नहिं कहके श्रीकृष्णको ही पीतांबर कहते हैं क्योंकि यह शब्द श्रीकृष्ण में ही रूह या प्रसिद्ध हो गया है ।
१६ । जिस शब्द का जिस क्रियारूप अर्थ है उसी क्रियारूप परिणमे पदार्थको ग्रहण करै वा कहै सो एवंभूत नय है । जैसेपुजारीको पूजा करते समय ही पुजारी कहना अन्य समयमें नहि
कहना ।
१७ । व्यवहार नय ( उपचार वा उपनय ) तीन प्रकारका है सद्भूत व्यवहार नय, असद्भूत व्यवहार नय, और उपचरित व्यवहार नय, इसका दूसरा नाम उपचरितासद्भूत व्यवहार नय भी है।
१८ | एक अखंड द्रव्यको भेदरूप विषय करनेवाले ( जानने वाले) ज्ञानको सद्भूत व्यवहार नय कहते हैं। जैसे जीवके केवल ज्ञानादिक वा मतिज्ञानादिक गुण हैं. अथवा जीवको रागादिभावोंका कर्त्ता कहना क्योंकि जीवकी सत्ता में ही रागादिक भावरूप पर्याय होती हैं ।
१६ । जो मिले हुये भिन्न पदार्थों को प्रभेदरूप ग्रहण करै वा कहै सो प्रसद्भूत व्यवहार नय है। जैसे - यह शरीर मेरा है । श्रथवा मिट्टी के घड़ेको घीका घड़ा कहना, तथा जीवको द्रव्यकर्म या शरीरादिक नोकर्मीका कर्त्ता कहना ।
१६ | अत्यंत भिन्न पदार्थोंका जो श्रभेदरूप ग्रहण करै वा कहै सो उपचरित व्यवहार नय है । जैसे- हाथी, घोड़ा, महल मकान मेरे हैं तथा जीवको घटपटादिका कर्त्ता कहना ।
: