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हि०जै० सा० की राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि १३ किया और तीनों ने मिलकर १७६४ में कम्पनी पर धावा बोल दिया। बक्सर में पुन: एक निर्णायक युद्ध हुआ जिसमें ब्रिटिश फौज ने मुगल सम्राट और अवध तथा बंगाल के नवाबों की सम्मिलित सैन्य शक्ति को रौद कर उत्तर भारत में सुगमता से अपना साम्राज्य बढ़ाने का सुनहरा अवसर प्राप्त किया फिर तो जैसा हिन्दी के प्रसिद्ध कहानीकार भगवती चरण वर्मा ने लिखा है-'कम्पनी राज रबर के तम्बू की तरह दिल्ली तक पहुँच गया।२ इस लड़ाई में विजय प्राप्त करके कंपनी ने बंगाल, बिहार, और उड़ीसा की पूर्ण राजसत्ता प्राप्त की और अवध भी उसकी कृपा पर निर्भर हो गया। शाह आलम ने कम्पनी को उक्त तीनों प्रदेशों की दीवानी अथति राजस्व वसूलने का अधिकार दे दिया। बादशाह इलाहाबाद के किले में छ: साल तक एक प्रकार से कम्पनी का कैदी बन कर रहा। नवाब अवध शुजाउद्दौला ने ५० लाख रु० हर्जाने में दिया। केवल १७६६ से ६८ के बीच ५७ लाख पौण्ड की रकम बंगाल से वसूली गई। १७७० में बंगाल में भयंकर अकाल पड़ा। इस दुहरी मार से बंगाल बिलबिला उठा, प्रजा भूखों मर गई; नैतिकता और संस्कृति की सारी सीमायें ढह गई।
उत्तर भारत की शक्तियों को दबा कर कम्पनी ने दक्षिण भारत की तरफ ध्यान दिया जहाँ उसे मराठों, हैदरअली और निजाम हैदराबाद से मोर्चा लेना था। उस समय कम्पनी का नेतृत्व गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिगज़ के हाथों में था। उसने बड़ी कूटनीतिक चातर्य के साथ महादजी सिन्धिया को मध्यस्थ बनाकर १७८२ ई० में सालबाई की संधि कर ली। अंग्रेज त्रिगुट के संयुक्त मोर्चे से युद्ध करने से बच कर शक्ति संचय करने लगे। हेस्टिग्ज ने घूस देकर निजाम को फोड़ लिया, मराठो से समझौता कर ही लिया था फलत: हैदरअली को अकेला पाकर उसे पराजित कर दिया। उसके पुत्र टीपू की सैनिक शक्ति तोड़ने के लिए अंग्रेजों के नेता कार्नवालिस ने कूटनीति के जरिये मराठों, निजाम
और त्रावणकोर तथा दुर्ग के शासकों को अपनी ओर मिला लिया। १७९८ ई० में लार्ड वेल्ज़ली गवर्नर जनरल बन कर भारत आया। उस समय मराठे अपने आंतरिक संघर्ष में उलझे थे; अकेला चना कैसे भाड़ फोड़ता, टीपू पराजित हो गया। टीपू की हार से कम्पनी को दक्षिण भारत में अपना राज्य प्रसार करने का सरल मार्ग मिल गया। वेलेजली ने सहायक संधि द्वारा तमाम देशी रियासतों को अधीन बनाया; टीपू को जीत ही चुके थे, अवध के नवाब, हैदराबाद के निजाम और कर्नाटक के नवाब आदि ने इस संधि पर हस्ताक्षर करके कम्पनी की अधीनता मान ली। मराठों का महासंघ शक्तिशाली पड़ रहा था इसी बीच वेलेजली के स्थान पर हेस्टिग्ज आया। १८१७ में पेशवा ने पूनास्थित ब्रिटिश रेजिडेन्सी पर धावा किया और हार गया, पेशवा को गद्दी से उतार कर पेन्शन देकर बिठूर भेज दिया गया, उसका राज्य कम्पनी राज्य में मिला लिया गया। अब मराठे भी कम्पनी की दया पर आश्रित हो गये। मराठों के पतन के पश्चात् राजपूतों ने भी कम्पनी
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