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हि० जै० सा० की राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी
सन् १५९९ में मर्चेन्ट ऐडवेंचर्स नामक सौदागरों के एक समूह के तत्वाधान में पूरब के साथ व्यापार करने के लिए कम्पनी की स्थापना की गई। महारानी एलिजाबेथ ने सन् १६०० में इसे पूरबी देशों के साथ व्यापार का एकाधिकार प्रदान किया। १६०८ में सूरत में एक कारखाना खोला। कैप्टन हाकिन्स को जहाँगीर के दरबार में भेजा गया किन्तु उस समय पुर्तगाली प्रभाव के कारण उसे आगरा से वैरंग वापस लौटना पड़ा; इन लोगों ने पुर्तगालियों को परास्त किया; मुगल दरबार में अपना प्रभाव बढ़ाया और पश्चिमी तट पर कई स्थानों में कारखाना खोलने का शाही फरमान प्राप्त किया। १६१५ ई० में सर टामस रो मुगलदरबार में पहुँचा और मुगल साम्राज्य के सभी हिस्सों में व्यापार करने का फरमान हासिल कर लिया। पुर्तगाली गोवा, दमन, दिव को छोड़ शेष सभी स्थानों से हट गये।
इस कंपनी का डच कम्पनी से इण्डोनेशिया के मसाला व्यापार के लिए संघर्ष हआ तो अंग्रेजों ने भारतीय व्यापार पर विशेष ध्यान देना प्रारंभ किया और १७९५ ई० तक डचों को भारत के सभी स्थानों से बहिष्कृत कर दिया। सन् १६०० से १७४४ तक ईस्ट इण्डिया कंपनी के व्यापारिक प्रभाव में लगातार वृद्धि होती रही। इन लोगों ने राजनीतिक शक्ति-शून्यता का लाभ उठाकर पहले दक्षिण भारत में अपने व्यापार एवं अधिकार क्षेत्र का प्रसार किया। धर्म प्रचार भी करते रहे। मछलीपत्तन तथा मद्रास के कारखाने की किले बन्दी करके इन स्थानों पर पूर्ण स्वामित्व स्थापित किया। कमाल की बात यह है कि इस कंपनी ने इस देश को जीतने के लिए जो भी लड़ाई लड़ी उसका खर्च इसी देशवासियों से वसूला, चाहे दण्ड नीति से या कूटनीति और भेदनीति से। सन् १६६८ में मद्रास के कारखाने के बाद उड़ीसा, हुगली, पटना, बालासोर और ढाका आदि कई स्थानों पर कारखाने खोले गये। कम्पनी ने भारतीय व्यापार पर कब्जा करने के उपरान्त भारत पर राजनीतिक सत्ता स्थापित करने का निश्चय किया और यही के संसाधनों से इस देश को जीतने का लक्ष्य बनाया। सन् १६८७ में कम्पनी के निदेशक मंडल ने मद्रास के गर्वनर को लिखा, “आप नागरिक और नौसैनिक शक्ति की ऐसी नीति निर्धारित करें, तथा राजस्व की इतनी बड़ी राशि का प्रबन्ध करें कि दोनों को सदासर्वदा के लिए भारत पर एक विशाल, सदृढ़ और सुरक्षित आधिपत्य का आधार बनाया जा सके"१ कम्पनी का राज्य प्रसार और प्लासी का युद्ध
सन् १६८९ में मुगलबादशाह और अंग्रेजों के बीच हुगली लूटने के मुद्दे पर लड़ाई छिड़ी, अंग्रेज हार गये और डेढ़ लाख रुपया हर्जाना देकर पुन: व्यापार का हक़
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