________________
हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
हुए। मध्य देशीय भाषा - शौरसेनी प्राकृत एवं संस्कृत आदि एक प्रकार की भाषा हुई, और असंस्कृत भाषाएँ - मागधी आदि दूसरे प्रकार की भाषाएँ थीं। इन भेदों का यह कभी भी मतलब नहीं था कि ये दोनों विभाजन दो भिन्न वर्ग की जुदा-जुदा भाषाएँ थीं । वस्तुतः ये दोनों एक ही परिवार की भाषाएँ थीं। फिर भी दोनों में उच्चारण सम्बन्धी भिन्नताएं पाई जाती हैं।
2
(1) बहिर्वर्ती उपशाखा की उत्तर-पश्चिमी तथा पूरब की बोलियों में अन्तिम स्वर इ, ए तथा उ विद्यमान है परन्तु अन्तर्वर्ती शाखा की पश्चिमी हिन्दी में ये स्वर लुप्त हो गये हैं। यथा- कश्मीरी-अछि, सिंधी - अखि, बिहारी (मैथिली-भोजपुरी ) आँखि, किन्तु हिन्दी - आँख | (2) बहिर्वर्ती उपशाखाओं में विशेषतया पूर्वी भाषाओं में अपिनिहिति (Eapenthesis) वर्तमान है ।
(3) बहिर्वर्ती उपशाखा में अइ ऐ, अउ > औ का ए और ओ रूप दिखाई देता है ।
(4) संस्कृत के च्, ज् पूर्वी भाषाओं में त्स-स् त या द्ज-ज में बदल जाता है।
(5) र्, त्स् तथा ड़, ड़ के उच्चारण की भिन्नता अन्तः और बर्हिः उपशाखाओं में स्पष्ट परिलक्षित होती है ।
(6) बहिर्वर्ती उपशाखाओं की भाषाओं में म्व > म तथा अन्तर्वर्ती उपशाखाओं में म्ववँ में बदल जाता है।
(7) बहिर्वर्ती उपशाखाओं में श, स, ष का परिवर्तित रूप मागधी में श दीख पड़ता है ।
( 8 ) महाप्राण वर्णों के अल्प प्राण में परिवर्तन के आधार पर भी यह भिन्नता स्पष्ट दीख पड़ती है । इस प्रकार बहुत से उदाहरणों के आधार पर डॉ० ग्रियर्सन ने भारतीय आर्य भाषाओं को दो उपशाखाओं में विभक्त किया है।
हम देखते हैं कि भारत की वर्तमान तथा इनकी पूर्वज भाषाओं के साक्ष्य के आधार पर इस मत की पुष्टि की गई है