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वियोग न थाय तेनीज मित्रता सर्वोत्तम छे ।। ११ ॥ एक गरम अने एक शीतल एवा सूर्य अने चन्द्रमानी प्रीति केवी? के जेनो माहनामां एकबार मेलाप थाय छे ॥ १२ ॥ बुद्धिमानोए एवो मित्र अथवा मनोहर स्त्री करवी जोईए के जे चित्रनी माफक कोई कालमां पण पराधिन न थाय ॥ १३ ॥ जगत्मां तेनीज मित्रता प्रशंसनीय छे के जे दिवस अने सूर्यनी माफक निरंतर अव्यभिचारपणाथी ( भेदभाव रहित एकत्र ) रहे छे ॥ १४ ॥ हे मित्र ? जे मित्रना क्षीण थवापर क्षीण थाय छे अने वृद्धि थवाथी वृद्धिरुप थायछे तेनेज साचो मित्र कहे छे अने तेज प्रशंसनीय छे. जे प्रमाणे समुद्रनी साथे चन्द्रमानी मित्रता छे, एटले चन्द्रमानी कला वधवाथी समुद्र वधे छे अने चन्द्रमानी कला जेम जेम क्षीण थती जाय छे तेम तेम समुद्रनुं पाणी पण घटतुं जायछे ॥ १५ ॥ आ प्रमाणे सांभळीने मनोवेगे का के हे महामते ! आ प्रमाणे कोप न कर, केमके आज हुँ आ मध्यलोकनी सघळी जिनप्रतिमाओना दर्शन माटे गयो हतो ॥ १६ ॥ त्यां देवताओने वंदनीक अढाई द्विपनी वच्चे जे कृत्रिम अकृत्रिम अनेक चैत्यालयो छे, ॥ १७ ॥ ते सघळानी में भक्तिपूर्वक पूजा वन्दना स्तुति करीने सघळां दुःखोने नष्ट करवावाळु पुण्य उपार्जन कीधुं ॥ १८ ॥ हे मित्र ! तारा वगर हुं क्षणमात्र पण रही शकतो नथी के जे प्रमाणे साधुना हृदयने सन्तुष्ट करवावाळा समताभाव वगर संयम रहेतो नथी. ॥ १९ ॥ भरतक्षेत्रमा भ्रमण करतां में स्त्रिओना सघळां आभूषणोमां तिलकनी समान अत्यंत शोभायमान वहु जातनी वस्तीवाळु पटना नामनुं एक नगर जोयुं ॥ २० ॥ जेमां निरंतर जग्याए जग्याए भ्रमरोना समूहनी माफक अथवा स्त्रीना केशोनी माफक श्यामवर्ण यज्ञनो