________________
नाभिकमलना छिद्रमांथी नीकळ्या, परंतु नीकळती वखते वृषणना बालनो एक अग्रभाग अटकी गयो, त्यारे लज्जित थवानी शंकाथी ते काढवामां असमर्थ थई तेज बालापने कमल बनावीने त्यांज पोतानुं आसन जमावीने बेसी गया. ते ठीकज छे,के विश्वव्यापिनी माया देवाने पण छोडती नथी ॥ ३३-३४-३५ ॥ तेज दिवसथी ब्रह्माजीनुं पद्मासन अथवा कमलासन नाम जगतमां प्रसिद्ध थयु. ते ठीकज छे, के महत्पुरुषोए करेलु कपट जगत् प्रसिद्ध होय छे, ॥ ३६ ॥ हे विप्रो, तमारा पुराणोमां एवं कथन छे के नहि ? ते निर्मत्सर भावधी कहो केम के सत्पुरुष होय छे, तेओ कदी असत्यवादी थता नथी ॥३७॥ त्यारे ब्राह्मणो बोल्या के बेशक ए प्रमाणे कथन हमारा पुराणोमां प्रसिद्ध छे. हे भाई! एवं कोण छे के जे प्रकाशमान सूर्यने छूपाची शके ? ॥ ३८ ॥ त्यारे मनोवेगे कह्यु के-हे ब्राह्मणो! ज्यारे ब्रह्मानो बाल नाभिना काणांमां अटकी गयो तो हाथीनी पूंछडीनो बाल कमंडलना काणामां केम न अटके ? ॥ ३९ ॥ ज्यारे सधळी पृथ्वी सहित कमंडलना भारथी अलसीना झाडनी डाळी नहि टूटी तो एक हाथीना भारथी मारुं भिंडानुं झाड केवी रीते टूटी शके ? ॥ ४० ॥ ज्यारे अगस्त्यना कमळबराबर कमंडलमां सघळी पृथ्वी समाई गई तो हे ब्राह्मणो ! मारा मोटा कमंडलमां मारी साथे हाथी केम नहि समाई शके ॥ ४१ ॥ कई विचार तो करो, के विष्णु जगतने पेटमा राखीने जगतविना क्यां बेठा! अने अगस्त्य मुनि पण क्यां बेठा हता? अने अलसी, झाड पण कोना उपर रघु? अने ब्रह्माजी पृथ्वी विनाज सृष्टीने ढूंढता क्या फर्या!