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निश्चयकारक हेतु देखातो नथी. जे प्रमाणे दीवो प्रकाशक छे, तेनाथी घटपटादि प्रकाशित थाय छे, परंतु घटपटादिक जे प्रमाणे दिवा विना पण प्रकाशित थई शके छे, ते प्रमाणे तालु आदि विना वैदिक शब्द कदापि प्रकाशित थई शके नहि ॥ ९-१० ॥ तथा कृत्रिम शास्त्रोमां अने वेदोमां कई विशेषता पण देखाती नधी, तो पछी वैदीक लोक केवारीते तेनी अपौरुषेयता सिद्ध करे छ? ॥ ११ ॥ ए सिवाय जो तालुकंठओष्ठादिक प्रकाशक छे तो जे प्रमाणे दिवो अनेक घटपटादिकने एक साथेज प्रकाशित करी दे छे, ते प्रमाणे तालुआदिक वेदने एक साथेज प्रकाशित केम करता नथी? ॥ १२ ॥ सर्वज्ञ विना वेदोनो अर्थ स्पष्ट केवीरीते प्रकट थई शके ? जो वेद पोतेज अर्थप्रकाशक छे, तो एमां अनेक विसंवाद ऊभा थाय छे, ते प्रत्यक्ष जोवामां आवे छे के-जैन बौद्धादिक सिवाय शिव वैष्णव दयानंदि वगेरे सघळा मतबाळा पोताने वेदानुयायी कहे छे, परंतु परस्पर एक बीजानी निंदा करता अने वेदनो असत्य अर्थ करवावाळा बतावे छे ॥ १३ ॥ जो वेद अनादिनिधनज छे तो वेदमां आ युगमा थयेला ऋषिओनां हजारो गोत्र अने शाखाओगें वर्णन केम लखेलुं छे? ॥ १४ ॥ जो कोइ कहे के वेदनो अर्थ परंपराथी जगायलो छे, तो ए कहे, पण ठीक नथी केमके जेनुं मुळ कारण सर्वज्ञ नथी, तेनी परंपरा क्यांथी आवी? ॥ १५ ॥ जो कोई कहे के सवळा असर्वज्ञ ळमीने सर्वज्ञनी माफक वेदार्थने जाणी शके छे एपण ठीक नथी, केमके सघनज आंधळा मळीने पोताना इष्ट मार्गने क दापिजाणी शकता नथी॥ १६ ॥ बीजा सवळा असर्जना होवाथी अनादि कालना नष्ट थयेला वेदार्थने आदिम लोक व्यवहारनी माफक कोण प्रकाश