Book Title: Dharmpariksha
Author(s): Ishwarlal Karsandas Kapadia
Publisher: Mulchand Karsandas Kapadia

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Page 210
________________ १९० साथै गुस्से थईने बौद्धमतने स्थाप्यो ॥ ६८ ॥ तेणे शुद्धोदन राजाना पुत्र बुद्धपरमात्मा कहीने प्रगट कर्या छे. ते ठीकज छे के कोपरुपी शत्रुथी हार खाइने संसारी जीव शुं शुं करता नथी ! ॥ ६९ ॥ कृष्णना मरवा पछी तेनी लाशने बलिभद्रजी भ्रातृमोहने वशीभूत थई छ महिना सूधी लईने फर्या, तेज दिवसथी जगतमां कंकाल नामनुं व्रत प्रसिद्धिमां 'आव्युं || ७० || हे मित्र ! मिथ्यादृष्टि पुरुषोए जे अगणित पाखंडमत चलाव्या छे, तेनुं हुं हजु क्यां सुधी वर्णन करूं ! ॥ ७१ ॥ जे पाखंडमत चोथाकालमा बीजरूप हता, ते सघळा आ पंचमकालरूपी पृथ्वीमां प्रगट थईने विस्तार पामी गया || ७२ ॥ जे सघळा देवोथी वंदनीक छे अने जेणे विरागनी साथे केवळज्ञानरूपी आ लोकधी त्रण लोकनुं अबलोकन कर्तुं छे तेज जिनेंद्र परमेष्टि सत्यार्थ आप्त अथवा देव छे || ७३ || अने जे शास्त्रमां संसार अने मोक्षने कारण सहित वर्णत्रेला छे, अने जे सधळा प्रकारना बाधक प्रमाणोथी रहित छे तेज साधुं शास्त्र छे ॥ ७४ ॥ अने उत्तमक्षमा, मार्दव, आर्जव, || सत्य, सौच, संयम, तप त्याग, आकिंचन्य, अने ब्रह्मचर्य एज कल्याणकारक दश प्रकारना धर्म छे || ७५ || अने जे बाह्य अभ्यंतर २४ परिग्रह रहित, जितोंन्द्रय, निःकषाय, परिषहने सहवावाळा अने नग्नमुद्रा धारक होय तेज साचा गुरुं छे || ७६ || आ प्रमाणे ए चारे ( देव, शास्त्र, गुरु, धर्म ) मोक्षरुपी नगरनां द्वार, संसाररूपी अग्निने जल समान अने मनवांछित सिद्धिनुं एकमात्र कारणज छे. ॥ ७७ ॥ तथा एज चारे सम्यकत्त्व, ज्ञान, चारित्र अने तपरुपी माणेकने आपवाबाळा छे, ए चारे सिवाय बीजुं कोई पण मुक्तिनुं कारण नथी ॥ ७८ ॥

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