Book Title: Dharmpariksha
Author(s): Ishwarlal Karsandas Kapadia
Publisher: Mulchand Karsandas Kapadia

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Page 228
________________ २०८ ज्ञानी पुरुष घणुंखरूं मुख्य फलनुज वर्णन करे छे. तेने लगतां नानां नानां फलो कहता नथी. जेम खेती करवामां धान्य थवाने फल कहे छे. पयाल वगेरे पण अनेक फल थाय छे, परंतु तेने मुख्य कहेता नथी. भावार्थ-उपला व्रतनुं मुख्य फल तो त्रिजा भवमां मोक्षे जq छे. ए सिवाय स्वर्ग अने मनुष्यभवनां अनेक प्रकारनां सुख सौभाग्यनी पण प्राप्ति थाय छे ॥ २१ ॥ आ बन्ने व्रतो विधिपूर्वक पूरां थवाथी पूर्ण फलनी इच्छा राखनाराओए पोतानी संपत्ति प्रमाणे उद्यापन पण अवश्य करवू जोइए ॥ २२ ॥ जो कोईने विधिपूर्वक उद्यापन करवानुं सामर्थ्य न हाये, तो व्रत बेवडवु जोइए. अर्थात् १० वर्ष अथवा दश महिना सूधी उपवास करवा जोइए, केमके आ प्रमाणे जो नहि करवामां आवे तो व्रतविधि पूर्ण केम थाय ? ॥ २३ ॥ संसार भ्रमणनो नाश करनारां अभय, आहार, औषध अने शास्त्र, आ चार प्रकारनां दान पण दररोज आपवां जोइए ॥ २४ ॥ जीवोने सौथी वधारे प्यारो प्राण छे, ते माटे जीवोनी रक्षा करवी अर्थात् सघळां दानोमां अभयदान करबुजं श्रेष्ठ छे, केमके प्राणीमात्र जे कंई धंधो रोजगार वगेरे आरंभ करे छे, ते एक मात्र पोताना जीवनी रक्षाने माटेज करे छे. तेथी जीवरक्षाथी अधिक श्रेष्ठ कोईपण दान थई शकतुं नथी ॥ २५-२६ ॥ पुरुषने धर्म, अर्थ, काम, अने मोक्ष आ चारे पुरुषार्थनो आधार जीवन छे, माटे जेणे जीवतदान आप्युं, तेणे तो शुं नहि कर्यु ? अर्थात् सघळु कयु अने जेणे प्राण हरी लीधां तेणे बाकी शुं छोडयुं ? सघळु हरी लीधुं

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