Book Title: Dharmpariksha
Author(s): Ishwarlal Karsandas Kapadia
Publisher: Mulchand Karsandas Kapadia

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Page 239
________________ ग्रंथकर्तानी प्रस्तावना. श्री माथुर संवना मुनिओमां श्रेष्ठ, सिद्धान्त समुद्रना जाणकार, कपायोने जाण करवाना उपायोमां चतुर अने आचार्योमा गण्यमान एवा एक वीरसेन नामना आचार्य थया ॥ १ ॥ तेना शिष्य, उदयाचलथी सूर्य समान नष्ट करी छे सघळा अंधकारनी प्रवृति जेमणे, लोकमां ज्ञानरूपी प्रकाश करवावाळा, सत्पुरुषोने प्यारा, धीरताना कारण, नष्ट कर्या छे सघळा दोष जेमणे एवा, देवसेन नामना आचार्य थया ॥ २॥ तेमना शिष्य, पदार्थोना समूहने प्रकाश करनारा, दोषरहित, मुनिगणोना नाथ ( संघना नाथ ) सूर्यथी दिवस समान भव्यरूपी कमल समूहने प्रफुल्लित करवावाळा, एक अमितगति नामना आचार्य थया ॥ ३ ॥ ते अमितगति महाराजना शिष्य, पवित्रधर्मना अधिष्ठाता, विभू, पार्वतीनाथनी माफक कामदेवने नष्ट करवावाळा, मन, वचन, कायाने वश करनारा अने मुनि, अजिंका, श्रावक, श्राविकाना संवथी पूजित, एवा नेमिषेण नामना आचार्य थया ॥ ४ ॥ ते नेमिषेण आचार्यना शिष्य, कोपनिवारी, शम दमधारी, उत्तमतार्थी नम्रतानो छे रस जेमां, गर्वने छोडनारा, मुनिओमां श्रेष्ठ, शमावी दीघो छ मन्मथ जेमणे, एवा माधवसेन नामना आचार्य थया ॥ ५ ॥ ते माधवसेन आचार्यना शिष्योमा श्रेष्ठ, निर्दोषज्ञानना धारक अमितगति नामना चतुर शिष्ये धर्मनी परिक्षा करवाने माटे सघळाने शरगरूप आ श्रेष्ठ, धर्मपरिक्षा ग्रंथनी रचना करी छे ॥ ६ ॥ आ धर्मपरीक्षा में अल्पज्ञानीए बनाबी छे, एमां जे काई भूलचूक होय, तेने स्वपर

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