________________
ताना हितकार्योमां कदापि प्रमादी थता नथी ॥ ८९ ॥ जे प्र. माणे आ विस्तृतकीर्ति पवनवेगे लीलामात्रथी बे दिवसमांज देव मनुष्योवडे पूजनीय पोताना सम्यग्दर्शनने चंद्रमा समान उज्वल कर्यु तेज प्रमाणे विस्ततकीर्तिवाळा अमितगति आचार्य पोताना आ काव्यनी बे मासमांज दोषरहित रचना करी ॥१०॥
आ प्रमाणे श्री अमितगतिआचार्य कृत धर्मपरिक्षा संस्कृत ग्रंथनी गुजराती भाषाटिकामां वीममुं प्रकरण पूर्ण धयुं.
समाप्त
ka