Book Title: Dharmpariksha
Author(s): Ishwarlal Karsandas Kapadia
Publisher: Mulchand Karsandas Kapadia
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सायोपशामिक भेदथी त्रण प्रकारनु छ । ६७ ॥ आ सम्यक्त्वरूपी रत्नने हरवावाळा अथवा आ धर्मरूपी वृक्षने कापवाने माटे कूहाडी समाने पहेला चार कषाय ( अनंतानुबंधि क्रोध, माया, मान, लोभ ) अंने मिथ्यात्व सम्यक्त्व अने मिश्र आ त्रण दर्शनमोहिनीनी प्रकृति, आ प्रमाणे सात प्रकृतिओ छे ।। ६८ ॥ जे वखते जीवोने आ साते प्रतिबंधक प्रकृतिओ नष्ट थवाथी मेघपटलोना अभावथी सघळा अंकारनो नाश करवावाला सूर्यबिंब समान जे सम्यक्त्र प्रगट थाय छे, ते सघळाथी 'श्रेष्ठ अने शुद्ध क्षायिक सम्यक्त्व छे. अने आ सम्यक्त्व उत्पन्न भया पछी कदी नष्ट थतुं नथी तथा जे आ साते प्रकृतिओ समाइ जवाथी उत्पन्न थाय छे तेने शामिक सम्यक्त्व कहे छे. - आ सम्पनल अन्तरमुहूर्तज रही शके छे अने जे आ साते प्रकृतिओनो कई क्षय अने कई शमन थवाथी उत्पन्न थाय छे तेने वेदक सम्यक्त्व तथा मिश्र अथवा क्षायोपशामिक सम्यक्त्व कहे छे ॥ ६९-७० ॥ जे सम्यग्दृष्टि जिन.मतना तत्त्वोमा शंका करे नहि (१) संसारिक सुखोनी वांछा करे नहि (२) धर्मात्मा, रोगी, दरिद्री वगेरे जैनो साथे ग्लानि करे नहि (३) कुदेव, कुगुरु अने कुधर्ममां विशुद्धचित्त थई मोहने प्राप्त थाय नहि ( ४ ) संयमि, मुनि, श्रावकोना दोषोने छूपावे (५) पोताना तथा पारकाना पवित्र चित्तमां स्थिरता करे ( ६ ) धर्मात्माओ साथे शल्यरहित वात्सल्य राखे ( ७ ) आहंसा धर्मनो महिमा वधारे (८) संसारथी भयभीत ( ९) वैराग्यरूप ( १० ) मन्दकषायी ( ११ ) पोतानी निंदा करे ( १२ ) पोते करेला दोषोनी निंदा करे ( १३) पंचपरमेष्ठिनी दररोज भक्ति करे ( १४ ) दयारूपी स्त्रीनेज आलिंगन करवामांज पोतानी

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