Book Title: Dharmpariksha
Author(s): Ishwarlal Karsandas Kapadia
Publisher: Mulchand Karsandas Kapadia
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२०३
पहेलु:-जीवन, मरण, सुखदुःख, योग वियोगादिकमां समान भाव राखी आलस छोडीने दररोज सामायिक करवू जोइए ॥ ८४ ॥ सामायिक वखते परवस्तु तथा बीजां सबळां कामोथी विरक्त थइने समभावपूर्वक बे आसन ( कायोत्सर्ग अथवा पद्मासन ) बार आवते ( एक एक दिशामां त्रण त्रण ) अने चारे दिशाओमां चार प्रणति करीने त्रिकाल वंदना ( सामायिक ) करवू जोइए ॥ ८५ ॥
बीजुः-पर्वचतुष्टयमां (बे आठेम अने बे चौदशने दिवसे ) सघळा प्रकारनो आरंभ अने भोगउपभोगनो त्याग करीने भक्तिपूर्वक उपवास करखो जोइए ॥ ८६ ॥ जे उपवासमां पांचे इन्द्रिओ पोतपोताना विषयधी निवृत्त थइने आत्मामांन स्थिर होय, कोइ विषयमां पण चलायमान नहि होय, आ प्रमाणे जितोंद्रियतानी साथे चार प्रकारना आहारनो त्याग करीने दिवस अने रात ध्यान स्वाध्यायमांज गाळवां, तेनेन भगवाने उपवास करवो कहेलो छे ॥ ८७--८८ ॥
चीजें:-भोग्य (जे एकवार भोगववामां आवे ) उपभोग्य ( जे वारंवार भोगववामां आवे ) - जे परिमाण ( गणत्री ) करवू ते भोगोपभोग परिमाणवत जेमां पुष्पमाला, गंधलेपन, पक्कान, ताम्बूल, भूषण, स्त्री, वस्त्र, सवारी वगेरे, दररोज परिमाण करीने व्रतनी इच्छा राखनारा सज्जन पुरुषोए सेवन कवू जोइए ॥ ८९--१० ॥
चोथुः-घर आगळ आवेला आरंभत्यागी, जितेंद्रिय, उत्तम श्रावक, (क्षुल्लक ऐलक ), श्राविका, मुनि, आर्जिका वगेरे अतिथिने माटे भक्तिपूर्वक अन्नपान औषधादिकनो विभाग करवो अर्थात् दान करीने सेवन

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