Book Title: Dharmpariksha
Author(s): Ishwarlal Karsandas Kapadia
Publisher: Mulchand Karsandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 222
________________ तेणे त्रण लोकने उलंघन करवावाळी लोभरूपी अग्निने अटकावी अर्थात् पोतानो लोभ घटाडयो छे ॥ ७६ ॥ __दिग्वतमा जे दशे दिशाओगें परिमाण कयु, ते दशे दिशाओमां कोईपण प्राणी एक दिवसमां जई शकतो नथी ते माटे दररोज, सात दिवस, पंदर दिवस अथवा महिनो इत्यादि वखतनी मर्यादाथी क्षेत्रनु परिमाण करी लेवू, ते बीजं देशव्रत छे, एनुं फल उपला गुणव्रतनी माफक त्याज्यक्षेत्रमा महाव्रत पालवा जेवू बीजं पण वधारे थाय छे, ते ठीकज छे के, विशेष कारणथी विशेष कार्य केम न थाय ? ॥ ७७--७८ ॥ व्यर्थ हिंसादिकने त्यागवानी इच्छा राखवावालाए धर्मकार्योमा अनुपकारी अने पापकार्योमां सहायक एवा पांच प्रकारना अनर्थदंडने त्यागवा जोइए ॥ ७९ ॥ दयावान श्रावकोए हिंसाने माटे मोर, कूतरो, बिलाडी,, मेना, पोपट, कुकडा वगेरेने पकडाने पालन पोषण कर, जोइए नहि ॥ ८० ॥ तथा हिंसाना कारणे फांसी, डांग, झेर, शस्त्र, हळ, दोरडु, अग्नि, जमीन, लाख, लोढुं, गळी इत्यादि पदार्थ कोईना मागवाथी आपवा जोइए नहि ॥ ८१॥ ए सिवाय जेमां जीवनी उत्पत्तिनी पूर्ण संभावना होय, एवां अथाणां, मुरब्बा, फूलेली वस्तु, सडेला पदार्थोनुं भक्षण पण कदापि आपवां जोइए नहि ॥ १२ ॥ सामायिक, उपवास, भोगोपभोग परिमाण अने अतिथिसंविभाग ए चार प्रकारना शिक्षावत छे ॥ ८३ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244