Book Title: Dharmpariksha
Author(s): Ishwarlal Karsandas Kapadia
Publisher: Mulchand Karsandas Kapadia

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Page 217
________________ १९७ Pita लोढानी शिलाओ पकडावी ने वज्राग्निमां नांखी दे छे ॥ २८ ॥ जे प्रमाणे मांसभक्षी सिंहनुं चित्त, हरणने जोईनेज तेने मारखाने चालत थाय छे, ते प्रमाणे मांसभक्षी मनुष्योनी बुद्धिं पण जीवोने मावामां प्रवर्त्ते छे, ते माटे बुद्धिमानोए मांस भक्षणनो त्याग कवो जोईए ॥ २९ ॥ जे नीच उत्तमोत्तम सारा पदार्थोंने छोडीने -मांस भोजन करे छे, ते निश्चय करीने महा दुःखमय नर्कमांथी कदी नीकळतो नथी ॥ ३० ॥ बहु तो शुं कहीए ! मांसभक्षी अने कूतरामां कंईपण फेर नथी, तेथी हितैषी पुरुषोए कालकूट विषनी समान जाणीने मांसने अवश्य छोडी देवुं जोईए ॥ ३१ ॥ नावडे अग्निथी वेलानी माफक लोकमर्यादा नाश थई जाय छे धर्म अर्थनाश करावाळो मदिरा ( दारु ) ने कदापि पीवो जोईए नहि || ३२ || मदिराथी उन्मत्त थइने मनुष्य पोतानी माता, बहेन अने पुत्रीने पण भोगववानी इच्छा करवा लागी जाय छे, माटे मदिराथी वधारे निंद्य अने दुःखदायक पदार्थ जगतमां बीजो कोई नथी ॥ ३३ ॥ जे पुरुष मदिरा पीए छे, ते छाकटो थईने रस्तामां पड़ी जाय छे; तेना मोंहमां कूतरा पशाब करी जायछे अने चोर कपडां चोरीने लई जाय छे ॥ ३४ ॥ जे प्रमाणे अनि वृक्षोने बाळी मूके छे, ते प्रमाणे मद्यपान करवाथी मनुष्यना चित्तमांथी विवेक, संयम, क्षमा, सत्य, शौच, दया, जितेंद्रियता वगेरे सघळा धर्मनो नाश थई जाय छे ॥ ३५ ॥ मदिरा जेवुं बीजुं कोई कष्टकारक नथी, कोई अज्ञानदायक नथी अने कोई निंदनी अथवा महाव नयी || ३६ || जे पुरुष मदिरा पीने छाकटो यई जाय छे, ते जेने जुए छे तेनी आगळ निर्लज थइने नमस्कार करे छे,

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