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सात तत्वोपर श्रधान करवाने सत्पुरुषोए व्रतोने पोषनारुं सम्यक्त्व कर्तुं छे. ॥ १० ॥ आ पवित्र सम्यग्दर्शनने शंकाकांक्षादि आठ दोष रहित अने संवेग, वैराग्य, दया अने कास्तिक्यादि गुणो सहित धारण करवावाळा पुरुषनुज व्रत (चरित्र ) फलवान थाय छे. ॥ ११ ॥
श्रावकाचारनुं वर्णन. श्रावकाचारमां पांच अणुव्रत, त्रण गुणव्रत, अने चार शिक्षाव्रत ए प्रनाणे बार व्रत कहलां छे. ॥ १२ ॥
१ अहिंसा २ सय ३ अस्तये ४ ब्रह्मचर्य ५ असंगता ( अपरिग्रहत्व ) एनो एकदेश धारण करवो तेने पांच अणुव्रत कहे छे. ॥ १३ ॥ हे भाई ! व्रतने धारण करवू तो सहेलुं छे परंतु तेनी रक्षा करवी कष्टकारक छे, जेमके वांसने कापवो तो सहेज छे परंतु घसवो घणो अवरो छे ॥ १४ ॥ जे प्रमाणे मनवांछित सुखने आपवावाळा धनने घरमां संताडीने रक्षा करे छे, ते प्रमाणे पोताना चित्तरूपी घरमा ग्रहण करेला व्रतरूपी रत्नने राखीने यत्नथी सदा रक्षा करवी जोईए. ॥ १५ ॥ केमके जे व्रत प्रमादथी नष्ट थई जाय छे ते फरीथी प्राप्त यतुं नथी. शुं कोई समुद्रमा नांखेलुं दिव्यरत्न लई आववाने समर्थ छे ? कोई नहि ॥ १६ ॥ त्रस अने स्थावरना भेदथी जीव बे प्रकारना छे, तेमांथी व्रतनी इच्छा करवावाळा श्रावके त्रस जीवोनी रक्षा करवी जोईए, त्रस जीवोनी रक्षा करवानजे अहिंसाणुव्रत कहे छे ॥ १७ ॥ वे इंदिवाला, त्रण इंद्रिवाला, चार इन्द्रिवाला अने पांच इन्द्रिवाला ए चार प्रकारना स जीयोने जाणीने पाताना हितनी वांछा करनारा पुरुषाए