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छे ? ।। ५२ ॥ मरवानी इच्छा न करीने पण जो कोई विष खाय छे तो शुं ते नथी मरतो? अवश्य मरे छे ॥ १३ ॥ जो आत्मा सर्व शुद्ध होत, तो पछी ध्यानाभ्यासादि केम करवामां आवे छे ? कोई चोख्खा सोनानी परिक्षा माटे पण प्रवृत्ति करे छे ? अर्थात् कोई पण करतुं नथी ॥ ५४ ॥ कोई कोई मात्र ज्ञानथीज आत्मानी शुद्धि माने छे, माटे तेने पण मोटो भ्रम छे, केमके औषधीनुं मात्र स्वरुप जाणवाथीज के ईनो रोग दूर थतो नथी, परंतु तेने खावाीज थाय छे. तेज प्रमाणे ज्ञाननी साथे श्रद्धा अने चारित्र होवाथीज आत्मानी शुद्धि ( मोक्ष ) थाय छे ॥ ५५ ॥ कोई कोई श्वास रोकवा मात्रनेज ध्याननी सिध्धि थवी माने छे, माटे तेओ आकाशना फूलोथी मुगट बनाववानी इच्छा करे छे ॥ ५६ ॥ जे प्रमाणे काष्टमां आग्नि छे, ते मुप्रयोग विना प्रगट थती नथी, ते प्रमाणे आत्मा पण आ देहमांज रहे छे परंतु मृढ लोकोने तेनी प्राप्ति अथवा ज्ञान थतुं नथी ॥ ५७ ॥ सम्यगदर्शन, सम्यगृज्ञान अने सत्यगचरित्रद्वारा आत्मानां कर्म नष्ट थाय छे, केमके आ पूर्वोपार्जित कर्ममल वातपित्त अने कफथी उत्पन्न थवावाला व्याधिओनी माफक अनेक प्रकारनां दुःख दे छे. माटे आ रत्नत्रयीज नष्ट करवा जोईए, केमके-॥ ५८ ॥ जीव अने कर्मनो अनादि कालथी संबंध छे, माटे रत्नत्रय सिवाय बीचं कोई पण ए कर्मोनो नाश करवामां समर्थ नथी ॥ ५९॥ कोई कोई मतवाळा दीक्षा मात्रथीन आत्मा नी मुक्ति थवी माने छे, माटे ए पण भ्रम छे, केमके मात्र राज्य स्थापन थवाथीज शत्रुनो नाश थतो नथी ॥ ६० ॥ जे मूर्ख लोक दीक्षा मात्रथीज पापनो नाश थवो माने छे, ते आकाशनी तलवारना अग्रभागथी शत्रुनो शिरच्छेद करवा चाहे छे ॥ ६१ ॥ जीव, मिथ्यात्व, अव्रत अने क्रोधादि