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काम अने इन्द्रिओनो वेग नेणे एवा गुरु, अने कपटना संकट रहितसकल जीवदयाप्रधान धर्म, ए त्रणेज अप्रमाण छे, ज्ञाननी गति जेमां, एवी मोक्ष लक्ष्मिने प्राप्त करवावाळा छे, तेओ निरंतर मारा मनमा वसो ॥ १० ॥
आ प्रमाणे श्री अमितगति आचार्यकृत धर्मपरिक्षा संस्कृत ग्रंथनी गुजराती भाषाटीकामां सत्तरमु प्रकरण पूर्ण थयु. ॥ १७ ॥
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