Book Title: Dharmpariksha
Author(s): Ishwarlal Karsandas Kapadia
Publisher: Mulchand Karsandas Kapadia

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Page 207
________________ कारक मोटा पराक्रमी सुरनर वडे सेवित ते जिनेद्र भगवान सुमेरुनी माफक कायोत्सर्गे छ महिनानुं ध्यान धरीने स्थिर उभा रह्या ॥ ४२ ॥ ते पछी इन्द्रे भगवानना केशोने रत्नमयी पेटीमां मूक्या अने पोताना माथा उपर पेटी मूकीने सघळा देवो सहित उत्साहपूर्वक पांचमा क्षीरसमुद्र मां केशने पधरावीने पोतपोताने स्थाने गया ॥ ४३ ॥ भगवाने त्यागरुप प्रकृष्टयोध धारण कर्यो हतो, तथा ते शकटामुख वननुं नाम प्रयाध प्रसिध्ध थयुं छे ॥ ४४ ॥ भगवाननी देखादेखी बीजा चार हजार राजाओए पण तेज प्रमाणे तप ग्रहण करी लीधुं. ते ठीकज छे के सत्पुरुषोए आचरण करेला कार्यनो सघळा लोक आश्रय करे छे ॥ ४५ ॥ ते सघळा राजा केटलाक दिवस सूधी तो ऋषभनाथ भगवाननी पेठे आहार पाणी विना रह्या परंतु छ महिनानी अंदर तो तेओ सबळा दिनचित्त थई गया, अने क्षुधातृषादि दुःख सहन करवामांअसमर्थ थई गया. ते ठीकज छे के दीनचि-तवाळा अज्ञानी लोकोथी क्षुधा तृषादि परीषह सहन थई शकता नथी ॥ ४६ ॥ ते सघळा दिगंबर मुनिओ फल भक्षण करीने अशुध्ध जळ पीवा लाग्या. एवँ कयु कार्य छे के जे क्षीणशरीरवाळो क्षुधातुर माणस न करे? ॥ ४७ ॥ ए दिगबर मुनिओर्नु आ खोटुं आचरण जोईने ते वनना कोई देवताए कह्यु के-हे नृपतिगणो दिगंबर मुनिनो वेष धारण करीने आq निंद्य कार्य करवू कदापि योग्य नथी, केमके दिगंबर मुनि थईने जे पोतेन ग्रहण करीने आहार पान करे छे, ते नीच पुरुष कदी संसार समुद्रने तरी शकता नथी ॥ ४८-४९॥ मे दिगबरी साधु होय छे, ते बीजाने घेर नवधा भाक्ति पूर्वक बीजाए आपलं प्रासुक भोजन धर्मवृध्धिने माटे हाथनेज पात्र बनावीने ग्रहण

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