Book Title: Dharmpariksha
Author(s): Ishwarlal Karsandas Kapadia
Publisher: Mulchand Karsandas Kapadia

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Page 205
________________ १८५ मरुदेवीद्वारा ऋषभनाथ तीर्थंकर उत्पन्न थया ॥ २२ ॥ जे बखते नाथ तीर्थकर स्वर्गमांथी मरुदेवी माताना गर्भमां आव्या, ते वखते कुबेरे अयोध्या नगरीने मनोहर कोट खाई अने रत्नमयी मकानोथी शोभित करी ॥ २३ ॥ इन्द्रे निर्मल नीति अने कीर्ति समान कच्छराजानी नंदा अने सुनंदा नामनी बे कन्याओनो आदिनाथ साथ विवाह कराव्यो ॥ २४ ॥ ते बन्ने स्त्रीओथी आदिनाथ भगवानने ब्राह्मी अने सुंदरी नामनी बे कन्या अने मनने आनंद आपवावाळा सो पुत्र थया ॥ २९ ॥ कल्पवृक्षने अभाव थवाथी ज्यारे व्याकुल प्रजाए भगवानने जीवता रहेवानो उपाय पूछयो त्यारे भगवाने आसे, मासे, कृषि, वाणिज्य, पशुपालन, अने शिल्प एवा छ उपाय बताव्या. ए सिवाय गाम, पुर, नगरोनी रचना वगेरे चोथा कालनी सघळी व्यवस्था इन्द्र पासे करावी अने सुखथी राज्यभोग करवा लाग्या ॥ २६ ॥ एक समये ज्यारे भगवाननी सन्मुख देविओनो सुंदर नाच थई रह्यो हतो, त्यारे नाचतां नाचतां एक नीलंजसा नामनी देवीनं मृत्यु थई जतुं मोईने भगवाने पोताना मामां विचार कयौं के ॥ २७ ॥ जे प्रमाणे विजळीनी माफक जोतां जोतां आ नीलंजसा देवांगना नष्ठ थई गई, ते प्रमाणे मोह करवावाळी आ सघळी लक्ष्मि पण नष्ट थई जशे ॥ २८ ॥ जे प्रमाणे मृगतृष्णामां जळ अने आकाशपुरीमां महाजनानी प्राप्ति नथी, ते प्रमाणे आ असार संसारमां सुखनी प्राप्ति नथी || २९ || जे इष्ट वस्तु विना आ संसारमा एक क्षण मात्र पण रही शकातुं नथी, ते वस्तुनो अग्नि समान महा तापकारक वियोग सहेवो पडे छे ॥ ३० ॥ जो के चंद्रमा क्षीण थई वृद्धिने प्राप्त थई जाय

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